कई बार देखने में आता है की माँ बाप बच्चो की शरारतो से परेशान होकर उन्हें punishment देने लग जाते है. छोटी छोटी बात पर बच्चो को punish करना ताकि उनके मन में आगे गलती करे तो डर बैठा रहे.
ये सोचना कई बार हम पर ही भरी पड़ जाता है क्यों की हम सोचते है की बच्चो को छोटी गलतियों पर punish करने से वो बड़ी गलतियों के बारे सोचेंगे ही नहीं और हम गलत साबित हो जाते है. बच्चे कई बार ऐसी हरकत कर देते है जो हमारी सोच से परे हो जाती है.
इसी को हम एक माँ की भटकती रूह की कहानी के माध्यम से जानने की कोशिश करेंगे.
हम कई बार न्यूज़ पेपर में पढ़ते है की 10 वी में कम नंबर आने की वजह से student ने आत्महत्या कर ली, माँ बाप डांटते थे इस वजह से घर छोड़ दिया या उन्हें ही मार दिया.
ऐसी खबरे पढने के बाद हम भावनाओ में बह जाते है लेकिन अपने आसपास हो रही उन्ही घटनाओ को ignore कर जाते है.
आज की कहानी बहुत कुछ सिखा देने वाली है इसलिए इस कहानी से हमें क्या सिखने को मिलता है ये निर्भर करता है की आप इसे कैसे लेते है. खैर कहानी के माध्यम से एक positive moral सिखने की कोशिश करे.
एक माँ की भटकती रूह – सच्ची कहानी
बकिंघमशायर का मारलो का क्षेत्र शानदार बिशम कान्वेंट के लिए तो famous है ही साथ ही साथ यहाँ की सबसे दुखी भूत भी कम चर्चित नहीं. वहां के लोगो का कहना है की अगर आपको एक माँ की भटकती रूह देखनी है तो अपने साथ बच्चे ले जाए वो आपको जरुर दिख जायेगी.
आज हम आपको बताने जा रहे है डेम एलिजाबेथ के बारे में जो वहा बेहद प्रसिद्द है.
ये कहानी सच है या नहीं इसका तो पता नहीं लेकिन इसके बावजूद ये हमें काफी अच्छी शिक्षा दे जाती है. कहानी को पढने के बाद आपको समझ आ जायेगा की गुस्से में उठाए गए कई कदम हमें जिंदगीभर के लिए गुनेहगार बना देते है जिनका कोई पश्चाताप नहीं होता है.
डेम एलिजाबेथ – एक माँ की भटकती रूह
400 साल से वह बिशप कान्वेंट की बेहद शानदार इमारत के प्रमुख कक्षों में, बरामदो और बहने वाली टेम्स नदी के आसपास देखी जाती रही है. वह काले लिबास में आंसू बहाती, सुबकिया लेती तथा अपने साथ हवा में साथ साथ चलने वाले एक बर्तन में हाथ धोती हुई बेवजह चकराती भ्रमण करती है.
डेम एलिजाबेथ वहा की महारानी की खास मित्रो में से एक थी. लेटिन ग्रीक तथा अंग्रेजी की कवियत्री भी थी.
अपने बच्चो की शिक्षा उसके जीवन में काफी महत्वपूर्ण थी, मगर वह अपने सबसे छोटे बेटे विलियम से सबसे ज्यादा परेशान थी. वह पढने लिखने में सुस्त और बेहद शरारती था. उसकी कापियां और किताबे गन्दी लाइन से भरी हुई मिलती थी. इन सबकी वजह से डेम एलिजाबेथ अक्सर उसे पिटती भी थी. इन सबके बावजूद वो कभी सुधरा नहीं.
एक बार पढ़ाई को लेकर विलियम की माँ उस पर इतनी नाराज हो गई की उसने पहले तो अपने बेटे की खूब पिटाई कर दी और फिर एक अलमारी में उसे बंद कर दिया ये कह कर की जब वो स्कूल का कार्य कर लेगा तभी उसे बाहर निकाला जायेगा.
विलियम की मौत – एक माँ की भटकती रूह
विलियम को बंद कर एलिजाबेथ अपना काम कर रही थी की महल से उसके लिए बुलावा आ गया. महल जाने की जल्दबाजी में वो नौकर को बताना ही भूल गयी की विलियम अलमारी में कैद था और उसे निकालना था.
महारानी के पास से लौटने के बाद डेम एलिजाबेथ ने कांपते हुए हाथो से जैसे ही अलमारी खोली, वही हुआ जिसका डर उसे परेशान किये जा रहा था. विलियम अपनी कॉपी पर सर रखे मौत के आगोश में था. वहा पड़ी कॉपी उसके आंसुओ से भीग चुकी थी.
काफी देर तक डेम होश में ना आ सकी. महिना उसका दिमाग सदमे में दहला रहा, सोते जागते उसे सिर्फ अपना बीटा विलियम दिखता था. वह पागलो की तरह खुद को चोट पहुंचाती और बेहोश हो जाती. इन सबके बावजूद वो उस सदमे से ना उभर सकी. वो खुद को कभी माफ़ ना कर पायी.
बेटे की मौत का सदमा
91 साल की उम्र में जब डेम एलिजाबेथ की मौत हुई तब तक वो खुद को माफ़ नहीं कर सकी थी. उसकी मौत के ठीक दस दिन बाद ही एलिजाबेथ को उसी भवन में जहा उसके बेटे की मौत हुई वहा देखा गया. उसके बाद वो अक्सर वहा सुबकते हुए दिखाई देने लगी.
सन 1840 में जब भवन की टूट फुट का काम चल रहा था. तब पुराने सामान में कुछ कॉपी किताब भी मिली. उनमे से एक कॉपी ऐसी थी जो मध्य से खुली हुई थी. किसी बच्चे ने उसमे अपना English का पाठ लिखा था और बिच में एक मटमैला धब्बा था जो की विलियम के आंसुओ से बन गया था.
मरम्मत के दौरान जहाँ भी ये किताबे रखी गयी वही पर डेम का भूत देखा गया. बाद में जब वो किताबे अपनी सही जगह वापस रख दी गयी तब डेम एलिजाबेथ जो की अब एक एक माँ की भटकती रूह बन चुकी थी ने वहाँ पर स्थाई बसेरा कर लिया. अपने बेटे की अंतिम निशानी में एक भूत की ममता आज भी बरकरार है.
एक माँ की भटकती रूह – moral
ये कहानी काल्पनिक है या हकीकत पता नहीं लेकिन हमें इससे सीखने वाली बात जरुर मिलती है. बहुत से माता पिता अपने बच्चो को punishment देने के लिए इस तरह के कार्य करते है जैसे उन्हें अँधेरे कमरे में बंद कर देना, घंटो भूखा रखना, अपने से दूर कर देना, हर संभव डरा कर रखना.
ऐसा करने से उन्हें लगता है बच्चे उनके कण्ट्रोल में रहेंगे और शरारत नहीं करेंगे लेकिन कभी कभी ये उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हो जाती है.
माता पिता के ऐसा करने से बच्चे पर negative effect पड़ता है. इससे बच्चा गुमसुम रहना शुरू कर देता है, सहमा हुआ रहने लगता है कई केस में बच्चे negative होते जाते है और कुछ में बच्चे सदमे की वजह से मर भी जाते है.
बाद में पछतावा करना पड़े इससे बचने के लिए जब बच्चे शरारते करे तो उन्हें निम्न तरीको से आप जिम्मेदारी का अहसास करवा सकते है.
बच्चो को जिम्मेदार बनाने के tips
बच्चे नहीं चाहते की उन पर कोई पाबन्दी हो और आप उन्हें free नहीं कर सकते तो उन्हें जिम्मेदारी के साथ free करे. शुरू शुरू में हो सकता है की आपको इससे परेशानी हो लेकिन जब उन्हें जिम्मेदारी का अहसास होगा तो वो खुद इसे समझेंगे और आपको परेशान होने का मौका नहीं देंगे.
- बच्चो को फिर चाहे वो बेटा हो या बेटी घर के काम जरुर सिखाए इससे वो जब अकेले रहने लगे तो उन्हें परेशानी नहीं होंगी और आपकी help हो जाएगी.
- बच्चो को कभी भी “ये काम नहीं करना है” ना सिखाए अगर आप वाकई उन्हें किसी से दूर रखना चाहते है तो एक रोल मॉडल बढकर उन्हें उदाहरण पेश करे या फिर इससे होने वाले नुकसान बताए.
- हम अक्सर देखते है की बच्चे शरारते ज्यादा करते है. अगर आप इससे परेशान है तो उन्हें धमकाए नहीं बल्कि उन्हें ये समझाए की उनकी वजह से आपको कितनी तकलीफ हो रही है अगर वो आपसे प्यार करते है तो फिर शरारत नहीं करेंगे.
एक माँ की भटकती रूह – अंतिम शब्द
कहानिया हमें अक्सर बहुत कुछ सीखा देती है पुराने समय में बच्चो को कहानियो के माध्यम से moral संस्कार दिए जाते थे जो आज ना के बराबर है. अगर भूत प्रेतों की डरावनी कहानियो की बात ना करे तो दादा दादी से सुनी कई कहानिया बच्चो में बहुत बड़ा परिवर्तन लाती थी.
इसलिए एक माँ की भटकती रूह की कहानी के माध्यम से हमें बहुत कुछ सिखने को मिलता है.
उम्मीद करता हूँ आपको ये कहानी जरुर पसंद आई होगी और आप जान गए होंगे की बच्चो की परवरिश पर किस तरह हमें फोकस होना पड़ता है. शेयर और कमेंट करना मत भूले.