हम सबके मन में ये जिज्ञासा जरूर रहती है की क्या वाकई मंत्र काम करते है या फिर क्या वाकई मंत्र में इतनी शक्ति होती है की उनसे चमत्कार संभव है।
साधारण शब्द से लगने वाले मंत्र वाकई काफी शक्तिशाली होते है अगर उन्हें सही उच्चारण के साथ जाग्रत किया जाये तो।
आज की पोस्ट में हम मंत्र विज्ञान और मंत्र दीक्षा का महत्व बताने वाली छोटी सी घटना का वर्णन करेंगे जो बताती है की मंत्र किस तरह काम करते है। how to activate mantra power and what is the importance of mantra diskha in hindi.
सबसे पहले तो ये समझे की पहले मत्रं की उत्पति कहां से हुई ?
महात्माओ ने साधना की और सिद्धि पाई, उन्हे उस सिद्धि उपरान्त मंत्र कुंजी या चाबी की तरह प्राप्त हुआ, सिद्धि पाने के बाद या आप कह सकते है उन्होने ही code word बनाया, जैसे हम लोगो के घर के पते है, यह code words है।
पहले जगह पर घर बना फिर उसकी identity तथा फिर वहां पहुचंना सुगम हो सके इसलिए address बना । वो महात्मा को पहले मंत्र नही मिला पहले सिद्धि हुई फिर मंत्र बना, अब वो महात्मा जिस किसी को वह मंत्र देगा, साथ ही पूरा पूरा रास्ता बताएगा, मार्गदर्शन देगा तो वो मंत्र किसी दुसरे को सहायक हो सकता है, एक कहानी उदहारण स्वरूप लेते है।
मंत्र दीक्षा की राजा की इच्छा
एक राजा एक महात्मा के पास मंत्र दीक्षा हेतु गया, उस महात्मा ने कहा आप कल आना, वो अगले दिन फिर पहुंचा, महात्मा ने कुछ बात चीत की और फिर कल के लिए कह दिया, इसी तरह से चालीस दिन बीत गए, राजा जाता ओर महात्मा बात चीत करके फिर कल कह देता। चालीसवे दिन राजा ने महात्मा से प्राथना की मै यही रहूँगा महल नही जाऊंगा जब तक आप मंत्र दीक्षा नही देते।
महात्मा ने उसे उस दिन एक मंत्र दिया “राम” ।
राजा तो क्रोध मे आ गया ,कहा अच्छा मूर्ख बनाया आपने यह तो मै बचपन से सुनता आ रहा हूं की राम राम कहना चाहिए । चलो उसे भी छोड़ो चालीस दिन बेकार मे मेरी कसरत करवाई, उल्टी सीधी बातो मे कल कल के लारे दिए आपने और आज मैने जिद की तो राम मंत्र दे दिया।
अगर आप सन्यासी न होते मै आपको मृत्यु दडं दे देता। पर आप जैसो को महात्मा कहलाने का भी अधिकार नही तुम तो महा धूर्त हो अगर तुम्हारे पास कुछ नही था बताने को तो पहले ही कह दिया होता ।
राजा ने पूरे गुस्से से भला बूरा कहा और वहां से चला आया।
राजा का महात्मा को बंदी बनाना
महात्मा ने कोइ प्रत्युत्तर नही दिया, वो मुस्कुराते रहै । एक दिन राजा अपने सिहांसन पर विराजमान था ओर सभा लगी थी मंत्रियो और जनता का दरबार था, वहां वही महात्मा पहुंचा उसको देख राजा को सब याद आ गया और भीतर से क्रोधित होने लगा।
हद तो तब हुई जब महात्मा ने आते ही उसके मंत्रियो ओर सिपाहियो को राजा को ही गिरफ्तार करने को कहा, बस फिर क्या था राजा आपे से बाहर हो गया ओर उसने आदेश दिया पकडो लो इस पाखन्डी को जटा से घसीटो इसको और मेरे पास लेकर आओ।
राजा के इशारे से ही सब वैसा ही किया गया और उसे राजा के समक्ष लाया गया ।
राजा बोला तेरे पाखन्ड को तो मै पहले से ही जान चुका था, पर तू तो कोइ अपराधी छटा हुआ, भागा हुआ मुजरिम मालूम होता है उस दिन तो तुझे मैने छोड दिया था पर आज तो तेरा मत्र राम भी तुझे नही बचा सकता, तुझे कुछ कहना है अपनी सफाई मे, महात्मा हंसा और उसने कहा यही तो समझाने आया हूं, जो मैने तुझे मंत्र दिया वो मेरी सिद्धि है यू ही नही दिया वो मेरे हूक्म मे है, जैसे तेरे सिपाही तेरे हूक्म है किसी और की हूक्म स्वीकार नही कर सकते, तेरे कहते ही मुझे बन्दी बना लिया गया, तुम्हारा हुक्म चलता है इस देश मे मेरा उस देश मे, तुम यहां के राजा हो मे वहा का । राजा उसके चरनो मे गिर गया व क्षमा मागं ली।”
मंत्र दीक्षा का असली महत्व
मित्रो यह कहानी से काफी कुछ समझे होगें पर आपके प्रश्न अभी बरकरार है अब उस पर बात करते है, राजा को उसने पहले दिन मंत्र इसलिए नही दिया क्यों कि महात्मा समझना चाहता था कि राजा के लिए मंत्र बेहतर है, या कर्मयोग या वो गहरे श्रद्धा भाव से भरा है, चालीस दिन लगे राजा की भीतरी अवस्था जानने मेे, फिर उसने जाना कि यह सोच से ओत प्रोत है विचार शुन्य होकर, यह मंत्र इसके लिए मार्ग बन सकता है।
मित्रो अब प्रशन उठता है कि हम खुद किसी मंत्र का जाप नही कर सकते, मित्रो कर सकते हो पर वो उसी तरह है जैसे कोई address book मे से किसी पते को उठाकर चले, कहा जाना है, क्या मार्ग है, क्या मिलेगा कुछ पता नही, आप कहेगें की पता है तो कही भी पहूचं सकते है पते के द्वारा बिल्कूल पहूचं सकते है पर चलने का उस पते की और क्या उदेश्य केवल एक कल्पना है, इस ससांर की नजर से देखे तो भी एक पता अनेको जगहो का है।
अनेक यात्राए करके भी मालूम नही कर सकते सही जगह पहूचें या नही कोइ आगे चाय पानी भी पूछेगा नही द्वार भी कोइ खोलेगा या नही या द्वार खोलते ही सब कुछ लूट तो नही जाएगा मिलने का क्या पता, यह तो इस दुनीया की बात रही तो भीतर मे तो अन्नत जगत है, और उतने ही भ्रम जगत भी तो सोंचो क्या हाल हो सकता है आपका। कोइ धारणा किसी भी अन्जान पते के जैसी है।
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मंत्र दीक्षा और एकाग्रता
कुछ लोग मत्रं के साथ खुद की एकाग्रता की दुहाई देते है, जब खुद की एकाग्रता है तो मत्र भी खुद का ही हो सकता है यह तो एसे है कि पता हम किसी का रटेगे पर घर ही बैठे दोहराएगे, कही नही जाएगें । कुछ मत्र कुछ (थोड़े बहूत) काम के हो सकते है जैसे सूर्य, अग्नि, वायू, धरती, आकाश, जल को महसूस किया है तो इनका मत्रं, पर फिर मत्र की क्या जरूरत है, आप सीधे ही इन्हे प्रणाम कर सकते है, धन्यावाद दे सकते है, वो आपकी तोतली जुबां से भी स्वीकार करेगें, भावना पवित्र है इनके प्रति काल्पनिक नही है ।
अंतत मै तो द्रष्टा होने का ही सुझाव दूंगा, केवल देखो जो सच है वो सामने आ जाएगा, जो जानने योग्य होगा जान लिया जायेगा।
दोस्तों कैसी लगी आज की पोस्ट आज की पोस्ट में हमने मंत्र के विज्ञान और उसका सही इस्तेमाल कैसे हो सकता समझने की कोशिश की है उम्मीद करते है आपको हमारी आज की पोस्ट अच्छी लगी होगी। अगर आपके पास भी कोई आर्टिकल है जिसे आप ब्लॉग पर शेयर करना चाहते है तो हमें भेजे हम इसे अपने ब्लॉग पर शेयर करेंगे।