ओशो ध्यान विधि जो हमें सेक्स और समाधी के मध्य का सम्बन्ध समझाती है अपने आप में अद्भुत है। अगर आपसे पूछा जाये की ध्यान कैसे किया जाता है, कैसे किसी के प्रति समर्पण भाव उत्पन किया जाता है तो आपका ध्यान ज्यादातर शांत माहौल की तरफ जायेगा।
लेकिन क्या आप जानते है की पारम्परिक तरीकों से हट कर ओशो ने ऐसी कई विधि बताई जिनसे हम परम आनंद के भाव को प्राप्त कर सकते है। वैसे ओशो एक विवादित गुरु के नाम से भी लोगो में जाने जाते है.
ज्यादातर लोग इनके सिद्धांत को गलत मानते है लेकिन इसे पढने के बाद आप ऐसा नहीं सोचोगे. आइये जानते है की osho meditation sex to samadhi in hindi एक खास विधि कैसे है ?
उनकी सबसे प्रचलित विधि जो काफी विवादों में थी और वो थी सेक्स से समाधी की ओर.
इसकी आलोचना इस वजह से की जाने लगी थी क्यों की ये काम भाव से जुडी थी और उसे बढ़ावा दे रही थी। लेकिन इसके पीछे का विज्ञान कुछ और ही था।
हर कोई यही सोच कर परेशान होता है की क्या ऐसी भी कोई विधि होती है जिसमे काम से दूर रहने की बजाय उसमे डूबना है।
ओशो sex and meditation- सम्भोग से समाधी की ओर
ओशो की ध्यान की ये पद्धति काफी प्रचलित थी इसके कई कारण थे विदेशो में sex को सिर्फ बिस्तर तक नहीं मानते है।
उनकी नजर में ये stress दूर करने का माध्यम है। इसके अलावा शरीर में बढ़ती ऊर्जा को सही दिशा प्रदान कर समाधी में जाने की प्रक्रिया सिर्फ ओशो world में फेमस थी। यकीन मानिये ज्यादातर लोग ओशो के इस पद्धति को आलोचना की नजर से देखते है।
इसकी वजह है उनका काम भाव पर नियंत्रण नहीं होना उनका मानना है की अगर ऐसा होता है तो पतन का मार्ग खुलता है न की समाधी का।
From sex to super conscious –
ओशो ध्यान विधि में सम्भोग से समाधी- sex करते वक़्त हम जितनी ऊर्जा उत्पन करते है वो हमारे कुण्डलिनी और सप्त चक्र को जाग्रत करने के लिए काफी है।
ज्यादातर लोग सम्भोग को सन्तानोपत्ति ( फॉर child ) के लिए करते है। लेकिन उनका मानना था की अगर इस ऊर्जा को हम ध्यान में इस्तेमाल करे तो उससे हम समाधी की स्थिति को प्राप्त कर सकते है।
बशर्ते अगर आप संयम बनाए रखे यानि ऊर्जा को male और female दोनों में balance करके रखे. इसकी वजह है ऊर्जा चक्र का चरम पर पहुंचना।
जिसकी वजह से सप्त चक्र में ऊर्जा प्रवाह होने के बाद शरीर ऊर्जावान होने लगता है। ये विधि काफी हद तक तंत्र विज्ञानं से मिलती जुलती है।
rajnish osho जीवन खुद एक रहस्य से भरा हुआ था. आइए देखे ओशो से जुड़े रोचक तथ्य जो उन्हें जन्म से अलग बनाते है।
ओशो से जुड़े रोचक तथ्य | Acharya Rajneesh Osho Facts
1. पैदा होने के तीन दिन तक न रोये और न हँसे – ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में हुआ था | पैदा होने के तीन दिन बाद तक ओशो न तो हँसे थे और न ही रोये थे | इससे उनके परिवार के लोग बेहद परेशां हो गये थे
2. 12 साल की उम्र में रात में श्मशान जाते थे – ओशो 12 साल की उम्र में रात में बिना डरे श्मशान पहुँच जाते थे | वह यह पता करने के लिए जाते थे की आखिर इंसान मरने के बाद जाता कहाँ है
3. 14 साल की उम्र में सात दिनों तक मौत का इन्तजार करते रहे – ज्योतिषियों के अनुसार 21 साल तक हर सातवें वर्ष में ओशो की मृत्यु का योग बताया गया था | 14 साल की उम्र में वे सात दिनों तक मंदिर में लेटकर मौत का इन्तजार करते रहे | इस दौरान एक सांप भी आया, लेकिन वापस चला गया
4. संन्यास लेते ही पिता पैर पकड़कर रोये थे – ओशो के पिता को खुद ओशो ने ही संन्यास दिलाया था | सन्यास लेते ही ओशो के पिता उनके पैर पकड़कर खुद रोये थे | ओशो के पिता के पास 1400 एकड़ जमींन थी
5. दोस्तों को पानी डुबो देते थे – नदी में नहाते-नहाते ओशो अपने दोस्तों को पानी में डुबो देते थे | उनके दोस्तों से इस पर विवाद होता था | वे कहते थे; “मैं यह देखना चाहता हूँ की मरना क्या होता है”
सिर्फ अमीरो के गुरु
6. हाथी पर बैठकर स्कूल गए – ओशो शुरू से ही लग्जरी जीवन जीने के शौकीन रहे थे | एक बार तो उन्होंने जिद पकड़ ली की हाथी पर बैठकर ही स्कूल जायेंगे | जिद देखकर उनके पिता को हाथी मंगवाना पड़ा और उस पर बैठकर वे स्कूल गए
7. वे अमीरों के गुरु थे, गरीबो के नहीं – ओशो अपने इंटरव्यू में कई बार कहाँ की वे अमीरों के गुरु हैं | गरीबो की चिंता करने वाले बहुत से गुरु हैं, मुझे अमीरों के लिए सोचने दो
8. एक दिन में तीन किताबे पढ़ लेते थे – ओशो पढने-लिखने के बेहद शौकीन थे. किशोरावस्था में ही वे एक दिन में तीन-तीन किताबे पढ़ लिया करते थे | उन्हें जर्मनी, मार्क्स और भारतीय दर्शन की किताबे पढना पसंद था
9. 365 रोल्स रॉयस कार खरीदना चाहते थे ओशो – ओशो ने एक इंटरव्यू में कहा था की वे 365 रोल्स रॉयस कारें खरीदना चाहते हैं | एक वक्त तक उनके पास 90 रोल्स रॉयस कारें थी | यह कारें उनके शिष्य उन्हें दान में देते थे
10. अमेरिका में हत्या की कोशिश – ओशो ने आशंका जताई थी की अमेरिका में उनकी हत्या की कोशिश हो सकती है | 1981 से 1985 तक वे अमेरिका में रहे थे, इसके बाद वह विश्व भ्रमण पर निकल गए थे |
ओशो ध्यान विधि -OSHO MEDITATION
ओशो ध्यान विधि ओशो द्वारा अविष्कृत है। दुनियाभर में इस ध्यान विधि की धूम है। बहुत से धार्मिक और योग संगठन अब इस ध्यान विधि को थोड़ा सा बदलकर नए नाम से कराते हैं और उन्होंने इसके माध्यम से करोड़ों रुपए का व्यापार खड़ा कर रखा है।
हम यहां सक्रिय ध्यान पद्धति (Osho Dynamic Meditation yog) को संक्षिप्त में लिख रहे हैं। ओशो ध्यान विधि 5 चरण में पूरी की जाती है।
पांच चरणों में किया जाने वाले इस सक्रिय ध्यान को खड़े होकर किया जाता है।
जिसकी अवधि कुल एक घंटा है। प्रत्येक चरण 10-10 मिनट का होता है, लेकिन आप चाहे तो इसे शुरुआत में आधा घंटा अर्थात 5-5 मिनट का कर सकते हैं। यह ध्यान ओशो द्वारा तैयार किए गए संगीत के साथ किया जाता है।
1.प्रथम चरण : महा भस्रिका
शुरुआत होती है तेज, गहरी तथा अराजकपूर्ण भस्रिका से भी अधिक तीव्रता से ली गई श्वास-प्रश्वास की स्थिति से। श्वास का यह झंझावात तन-मन को झकझोर देता है।
2.दूसरा चरण : भाव रेचक
चीखें, चिल्लाएं, नाचें, गाएं, रोएं, कूदें, हंसें या फिर शरीर को इस कदर हिलाएं-डुलाएं की जैसे कोई भूत आ गया हो। पूरी तरह से पागल हो जाएं।
3. तीसरा : हू…हू…हू
अब बाजू ऊपर उठा कर रखें और जितनी गहराई से संभव हो ‘हू’ की ध्वनि करते हुए ऊपर-नीचे कूदें। पूरी लय और ताकत से ‘हू’ का उच्चारण करते हुए कूदें, उछलें।
4.चौथा चरण : स्टॉप ध्यान
एकदम रुक जाएं। स्थिर रहें। हिले-डुलें नहीं। जो भी आपके साथ घट रहा है उसके प्रति साक्षी रहें। क्योंकि एकदम रुकने के बाद उर्जा पुन: संग्रहित होने लगेंगी।
5.पांचवां चरण: उत्सव मनाएं
जैसे थकने के बाद जो शांति मिलती है उसका उत्सव मनाएं नृत्य करें या मौन होकर ध्यान मुद्रा में बैठ जाएं। इस अनुभव को दिनभर की अपनी चर्या में फैलने दें।
चेतावनी :
यह ध्यान सर्व प्रथम समूह में ही किया जाता है फिर जब इसे करना सिख जाएं तो अकेले भी कर सकते हैं इससे पूर्व इस लेख को पढ़कर अकेले करने का प्रयास कदापी न करें। गंभीर रोग से ग्रस्त व्यक्ति ध्यान प्रशिक्षक या चिकित्सक की सलाह लें।
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इस ध्यान का लाभ :
ओशो ध्यान विधि से कोशिका में विद्युत का संचार होता है तथा फेफड़ों में जमा हुई जहरीली हवा बाहर निकल जाती है। दमित भावनाओं से मुक्ति मिलती है। मन की ग्रंथियां खुलती है। शरीर की अनावश्यक चर्बी घटकर शरीर उर्जा और फूर्ति से भर जाता है। शरीर के सभी रोगों में यह लाभदायक माना जाता है।
यह ध्यान विधि व्यक्ति को जागरूक (साक्षी भाव में स्थित होना) करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आज की पोस्ट का उद्देश्य आपको सिर्फ ये बताना है की ध्यान की पद्धति चाहे कोई भी हो जब तक समर्पण, एकाग्रता, और उसका मूल अर्थ समझ नहीं आता है तब वो निरर्थक है।
इसलिए ध्यान की किसी भी पद्धति को करने से पहले उसका मूल यानि उसका तरीका समझे, अगर आपका समर्पण उस पद्धति के प्रति होता है तो ही करे। आज की ओशो ध्यान विधि आपको कैसी लगी कृपया comment के माध्यम से बताये।
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