रिश्तो की अहमियत आजकल की लाइफस्टाइल में सिर्फ एक फॉर्मेलिटी बन कर रह गई है। हर कोई बस अपने आप में ही मस्त रहना चाहता है।
उसे किसी और से कोई मतलब नहीं है। अगर आपके घर कोई रिश्तेदार भी आ जाये तो आप ज्यादा से ज्यादा कुछ घंटे ही उनके आने की ख़ुशी जाहिर करेंगे उसके बाद तो आप मन ही मन दुआ मनाने लगते है की कब वो जाने का कहे और कब आप का उनसे पीछा छूटे।
इसका सीधा असर आपकी आने वाली पीढ़ी यानि आज का भविष्य पर पड़ रहा है आपके बच्चे आपसे क्या सीखते है ?
मै, मेरा, मुझे….. आपने भी अक्सर कई बच्चो को ऐसी भाषा का प्रयोग करते सुना होगा। वे ना तो अपने खिलौने किसी के साथ शेयर करना पसंद करते है ना ही किसी से ज्यादा बात करना और घुलना, मिलना। घर में कोई रिश्तेदार या सगे संबंधी आ जाये तो वो अपने कमरे में रहना पसंद करते है।
किसी की शादी या सम्मलेन की बजाय गेम जोन में जाना ज्यादा पसंद करते है। बच्चो को समझाए रिश्तो की अहमियत कैसे आइये जाने
कई बार तो ये भी देखने में आता है की छोटे बच्चे भी रिश्तेदार से मिलना जुलना पसंद नहीं करते है। उनके इस व्यव्हार की उनके माता-पिता भी अनदेखी करते रहते है। जबकि अपनों से दुरी बनाना बच्चो के भविष्य के लिए खतरनाक है।
ऐसे में आपके लिए ये और भी आवश्यक है की बच्चो को रिश्तो की अहमियत समझाए और खुद भी सचेत रहे ताकि आगे चल कर उन्हें इसके दुष्परिणाम न झेलने पड़े।
कैसे सिखाये रिश्तो की अहमियत
कहते है माँ बच्चे का पहला गुरु और उसका खुद का घर उसकी पहली पाठशाला होती है। हमारे संस्कृति में बच्चे की पढ़ने की उम्र 5 साल से शुरू होती है जब वो गुरुकुल में प्रवेश करता है।
लेकिन एक बालक नन्ही उम्र में किताबी ज्ञान ग्रहण नहीं करता है बल्कि अपने आसपास के वातावरण से सीखता है यानि जो आप करते है, कहते है, जिस तरह का व्यव्हार आप अपनाते है आपका बच्चा वो सभी गुण बचपन से ग्रहण करता है।
ऐसे में आप चाहे तो बचपन से ही उसमे अच्छी आदते डाल सकते है। अगर आपका बच्चा गलती, शैतानी करता है तो उसे इसका नुकसान समझाए ना की मारपीट करे। बात करते है बच्चो को रिश्तो की अहमियत कैसे समझा सकते है।
अकेलेपन का कितना नुकसान
अगर बच्चे लोगो से घुलते-मिलते नहीं, रिश्तो से दूर भागते है तो आने वाले वक़्त में उन्हें अकेलेपन से लड़ना पड़ सकता है। यह अकेलापन कई अन्य बुरी आदतों में बदल जाता है जैसे विडियो गेम खेलना, सोशल मीडिया को ही अपना सब कुछ बना लेना।
इससे आगे बढ़ने पर नशे की आदतों में भी तब्दील हो सकता है। ऐसे बच्चे लोगो पर भरोसा भी नहीं कर पाते है।
अपनों का साथ और रिश्ते देंगे बहुत कुछ. आज के समय में जो बच्चा लोगो से मिलता जुलता है, रिश्तेदारो के बिच रहता है उसके अंदर व्यक्तित्व के कुछ गुण विकसित होते है।
जैसे लोगो का अभिवादन करना, बड़ो के सामने तर्कपूर्ण बात रखना, अच्छा व्यव्हार और दोस्त बनाने की काबिलियत, बेहतर सवांद कौशल, रिश्तो को निभा पाना के साथ साथ लोगो को साथ लेकर चलना जैसे गुणो का विकास होता है।
ऐसे बच्चे आगे चलकर खुद का कामयाब करियर बनाने में भी कामयाब होते है क्यों की उन्हें ये गुण कही से कोचिंग या सिखने की जरुरत नहीं पड़ती वक़्त के साथ उनमे इनका विकास होता रहता है।
मिलकर सुलझाए समस्याओ को
आमतौर पर बच्चे रिश्तो को तब तक नहीं समझते जब तक उन्हें रिश्तो पर भरोसा नहीं होता है।
इसी कारण वो इनसे दूर भागते है। इस भरोसे को भरने की शुरुआत आप कर सकते है। जब बच्चा माता-पिता पर पूरा भरोसा और सम्मान करता है तभी वह बाहर के लोगो से जुड़ने को तैयार होता है।
इसका आसान तरीका यही है की बच्चे की किसी समस्या या शिकायत को अनदेखा ना किया जाए बल्कि उनका साथ देकर उसका निवारण किया जाए।
जैसे बच्चा माँ के पास आकर कहे की माँ मेरा खिलौना नहीं मिल रहा है, क्या आपको पता है। इस पर अक्सर जवाब होता है नहीं मुझे नहीं पता, अभी मुझे परेशान ना करो।
खुद ढूंढो। यह तरीका गलत है। इस बात को दो नजरिये में लेकर देखते है। पहला आपका बच्चा आपसे यही सवाल करता है और आप उसे डांट देते है तो क्या होता है :
सोच का नजरिया लाता है बहुत बड़ा बदलाव
आपका बच्चा अब अगली बार जब अपनी किसी चीज को खोएगा तो वो आपसे मदद नहीं मांगेगा क्यों की उसके मन में नकारात्मक विचार भर चूका है की आप उसे मना कर देगी। हो सका है ये आपके लिए आराम का मामला हो क्यों की आपका बच्चा अब आपको डिस्टर्ब नहीं कर रहा है पर क्या होगा
जब वो एक चीज को ढूंढने के चक्कर में 10 चीजे उलट पलट कर देता है या फिर सामान ढूंढने के चक्कर में खुद को चोट पहुंचा देता है क्यों की ऐसा होना आम बात है।
वही अगर आप उसके समस्या को सुनकर उसकी मदद करते है तो अगली बार वो आपसे सकारात्मक उम्मीद रखेगा। हो सकता है की उसे इस बात का अहसास भी हो की उसकी गलती से आप को परेशानी हो रही है फिर भी आप उसकी मदद कर रहे है। तो वो अपनी जिम्मेदारी न सिर्फ समझेगा बल्कि इस बात की कोशिश करेगा की वो अपनी चीजे संभाल कर रखे।
रिश्तो की अहमियत में बने बच्चो के लिए प्रेरणा
घर से बाहर जब भ जाए बच्चो को साथ ले जाए। इससे उनकी आदत में ही घुलना मिलना आ जायेगा। यदि बच्चा छोटा है तो उसे कोई छोटी मोटी फायदे की बात समझा कर मना सकते है। पर ये भी ध्यान रखे हर बार अपनी बात मनवाने के लिए लालच देना अच्छा नहीं।
इसके आगे चल कर कई बुरे परिणाम झेलने पड़ सकते है।
क्यों की बचपन में अगर आप बच्चो को काम के बदले लालच देते है तो वक़्त के साथ उनके लालच में बढ़ोतरी होती चली जाती है हो सकता है आगे चलकर वो ऐसी चीजो की डिमांड कर दे जो आपकी हैसियत / बूते से बाहर हो। जैसे महंगा फोन या अन्य कोई ऐसी चीज जो आप दोनों के लिए फायदेमंद ना हो।
ऐसे में कोशिश यही रखे की लालच देने की बजाय बच्चो को इसके फायदे बताए क्यों की हम वही काम करना पसंद करते है जिसमे या तो हमारा लालच हो या फायदा।
सकारात्मक माहौल व्यक्तित्व विकास की पहली सीढ़ी है
बेहतर परवरिश के लिए सकारात्मक माहौल भी जरुरी है। सकारात्मकता यानि आपकी बातो में किसी के लिए भी नकारात्मकता न हो, कम से कम बच्चो के सामने तो बिलकुल न हो। घर में अक्सर माता-पिता दुसरो की बुराई करते रहते है, या फिर अपने वर्तमान में कमिया गिनाते हुए मिलते है।
अगर आप ऐसा कर रहे है तो आप अपने बच्चे में नकारात्मकता का विकास कर रहे है उससे आगे चलकर अपनी जिंदगी संघर्ष लगने लगती है जिससे वो हमेशा दूर भागने की कोशिश करेगा।
वो भी अपने आसपास के लोगो के प्रति वैसी ही सोच रखने लगता है जो आप उसके सामने बयां करते है। क्या आप जानते है मानव मस्तिष्क और ब्रह्मांड से जुड़े आश्चर्यजनक तथ्य
ऐसे में बाहरी लोगो से जुड़ाव कर पाना उसके लिए और भी मुश्किल बन जाता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखे की बच्चो के सामने किसी रिश्ते की बुराई न करे। आप अपने रिश्ते की खटास को बच्चे की जिंदगी में ना उतरने दे।
तय करे मन का माहौल मिले
बच्चे अपनी पसंद के माहौल में जल्दी ही घुलते मिलते है ऐसे में आपको ये देखना और भी जरुरी हो जाता है की आप उनकी आदत और पसंद दोनों जाने और उनके पसंद के माहौल को तैयार करने और ढलने में उनकी मदद करे।
अगर उन्हें अपनी पसंद के अनुसार माहौल नहीं मिलेगा तो उन्हें आपके साथ कही जाने में मजा नहीं आएगा और वो किसी से मिलना जुलना शायद ही पसंद करे। ऐसे में आप उन्हें वहां ज्यादा से ज्यादा ले जाये जहा उनका मन लगे और वो अपनी उम्र के लोगो से मिले जुले। जब उनका मन लगने लगेगा तब वो अपने आप बाकि के रिश्तो की ओर मुड़ने लगेंगे।
आपके बच्चे आपसे दूरिया बनाते है क्यों ?
अगर आप भी अपने थोड़े से मजे या प्राइवेसी के चलते अपने बच्चो को इग्नोर कर रहे है या थोड़ा बहुत लालच देकर उन्हें किसी ऐसी चीजो में उलझा रहे है जो आगे चलकर उनकी स्थाई जिंदगी का हिस्सा बन जाता है तो संभल जाइए क्योकि आपका बच्चो को आज इग्नोर करना आपके बच्चो द्वारा आपको आगे चलकर इग्नोर करने का कारण बन सकता है।
इसलिए उन्हें सही माहौल देने की कोशिश घर से करे अपने आप से करे। रिश्तो की अहमियत अगर बच्चो को समझा पाने में कामयाब रहेंगे तो आपकी जिंदगी में ये बदलाव जरूर आएंगे। यकीन मानिये जब आप ऐसा कर लेंगे तो
बच्चो के दोस्त बनने पर मिलेंगे ये बदलाव
- कोई बेटा अपनी पत्नी के कहने पर आपको अपने से दूर वृद्धाश्रम नहीं जाने देगा।
- कोई भी बच्चा आपका या आपके रिश्तेदार और बुजुर्गो का अपमान या इग्नोर नहीं कर पायेगा।
- आपके बच्चे आपसे कोई बात नहीं छुपायेंगे ना ही वो खुद को अकेला महसूस करेंगे।
- आपको इस बात की फिक्र नहीं रहेगी की आपका बच्चा बाहर के माहौल में ढल पायेगा या नहीं।
- आपके बच्चे किसी गलत संगत में नहीं पड़ेंगे। खासतौर से जिन्हें लगता है की उनकी बेटी या बेटा प्यार व्यार को छुपा रहा है, आपको ऐसी परिस्थिति से गुजरना नहीं पड़ेगा।
- उन्हें रिश्तो की अहमियत का अहसास होगा तो वो कभी गलत कदम नहीं उठाएंगे और अगर गलती होगी तो आपसे छुपायेंगे नहीं क्यों की वो जानते है की आपसे बेहतर उनकी मदद कोई और नहीं कर सकता है।
आज इस बात पर गौर जरूर करना की क्यों 13-14 साल की उम्र में आते आते हर लड़का लड़की प्यार को अपना सबकुछ मान लेता है, क्यों वो आपसे ये छुपाते है ? क्यों आपकी बेटी या बेटा किसी के बहकावे में आकर आपकी बदनामी की भी परवाह नहीं करते है। इन सभी का समाधान है बच्चो की समय समय पर अच्छी परवरिश और रिश्तो की अहमियत।
दोस्तों ये थी मेरी एक छोटी सी कोशिश आपको ये समझाने की की क्यों आपके बच्चे आपसे दूर होते जा रहे है और आज तो प्यार का दिन मनाया जा रहा है। हर माँ बाप के मन में ये सवाल जरूर है की कही उनकी बेटी या बेटा छुपकर कोई गलत काम तो नहीं कर रहा। आप सिर्फ उन्हें अच्छी परवरिश दे वो आपको कभी धोखा नहीं देंगे ये मेरा विश्वास है।
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बहुत बढिया लेख । पाश्चात्य शैली हमारे भारतीय संस्कारों पर हानी हो रहा है लेकिन हम पूरा दोष उसे नही दे सकते । कही न कही हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को बचपन से ही नैतिकता की शिक्षा दें ताकि उनमें रिश्तो की समझ पैदा हो।