तंत्र को मूल रूप से 2 भाग में बांटा गया है पहला देवी तंत्र और दूसरा मिश्र तंत्र. देवी तंत्र साधना का उदेश्य ब्रह्मत्व की भावना होता है जिसमे मानसिक शांति, दोष का निवारण शामिल है वही दूसरी ओर मिश्र तंत्र का उदेश्य सांसारिक होता है. इसमें खुद का लाभ, आकस्मिक धन प्राप्ति और वशीकरण, सम्मोहन, शारीरिक पीड़ा शांति शामिल है.
आज की पोस्ट में हम Yakshini tantra यक्षिणी तंत्र के बारे में बात करने वाले है जिसे किंकिणी तंत्र के नाम से भी जाना जाता है. अगर आप एश्वर्य के लिए साधना करना चाहते है तो आपको सुर सुंदरी यक्षिणी साधना करना चाहिए.
जो व्यक्ति अपने आप पर नियंत्रण रख सकता है और गुरु की प्राप्ति हो गई है वही मिश्र तंत्र को करने के लायक होता है.
इन साधनाओ में कर्ण पिशाचनी साधना, चेटक तंत्र, गायब होने का तंत्र, वशीकरण और स्तम्भन तंत्र शामिल है. इन सबसे महत्वपूर्ण है यक्षिणी तंत्र जिसे कई जगह पर किंकिणी तंत्र के नाम से भी जाना जाता है. इस तंत्र की रचना खुद भगवान शिव ने की है और इसमें प्रयोगात्मक साधना विवरण है जिनका पालन करना चाहिए.
यक्षिणी साधना के खास नियम होते है. साधक को meditation practice में माहिर होना चाहिए ताकि वो एकांत, शांत जगह पर बैठकर इसका अभ्यास कर सके.
जो देवी भक्त होते है वही इस साधना के अधिकारी है. यहाँ पर 2 तरह की यक्षिणी साधना है जिसमे शांत और उग्र यक्षिणी साधना शामिल है. अगर आपकी मान्यता यज्ञ और होम में है तो आपको शुभ यक्षिणी की साधना करनी चाहिए.
यक्षिणी की साधना 3 रूप में की जा सकती है पहला माता, दूसरा बहन और तीसरा प्रेमिका के रूप में.
साधक यक्षिणी को इन 3 रूप में ही सिद्ध कर सकता है इसलिए आपको सोच समझकर इसका चुनाव करना चाहिए और अपने ज्ञान और शक्ति के अनुसार ही स्वरूप का चुनाव करना चाहिए. आइये जानते है और ज्यादा डिटेल से.
what is yakshini tantra in Hindi
यक्षिणी तंत्र या किंकिणी तंत्र अपने आप एक गहन विज्ञान है जिसमे हमें यक्षिणी साधना से जुड़ी वो महत्वपूर्ण बाते पता चलती है जिन्हें और कही जानने को नहीं मिलता है.
यक्षिणी कितनी होती है इनके बारे में हम पहले की पोस्ट में बात कर चुके है इसलिए उसका यहाँ कोई मतलब नहीं है.
हम इस तंत्र से जुड़ी कुछ खास जानकारी पर बात करने वाले है जैसे की
यक्षिणी तंत्र में मुद्रा का महत्त्व
yakshini tantra में साधना से जुड़ी खास मुद्रा का जिक्र है जिसको ध्यान में रखते हुए ही साधना करनी चाहिए. इसमें कुछ खास मुद्रा शामिल है जैसे की आवाहन मुद्रा, विसर्जन, ह्रदय, गंध पुष्प अर्पण मुद्रा, सबसे खास क्रोध मुद्रा जिनके बगैर साधना अधूरी होती है.
इन सभी मुद्रा का साधक को पता होना चाहिए और इन्हें ध्यान में रखते हुए साधना करनी चाहिए.
यक्षिणी साधना में अलग अलग विधान का पालन करना होता है लेकिन मुद्रा सब में ऊपर बताये गए अनुसार ही रहती है. अगर आप इसकी और ज्यादा जानकारी चाहते है तो आप Yakshini tantra pdf book download कर सकते है.
प्रत्येक यक्षिणी के लिए मंत्र के साथ यंत्र सामग्री और हवन सबका अलग अलग विधान है. इन सभी नियम का पालन करते हुए साधना को पूरा करना चाहिए.
प्रत्येक यक्षिणी किसी न किसी एक विशेष सिद्धि से युक्त होती है और यक्षिणी सिद्धि के बाद वही शक्ति साधक को मिलती है.
जिस तरह शत्रु बाधा शांति निवारण प्रदान करने वाली यक्षिणी से आप वशीकरण की उम्मीद नहीं कर सकते है. साधक सबसे पहले खुद निर्णय करे और जिस उदेश्य की प्राप्ति चाहते है उसी यक्षिणी की साधना करे.
यक्षिणी साधना को कभी भी आजमाने के लिए ना करे क्यों की अधूरी साधना भी खतरनाक होती है. प्रत्येक यक्षिणी का एक विशेष क्षेत्र होता है और उतना ही उसका शक्ति का दायरा होता है. यक्षिणी साधना को खास, निर्जन स्थान पर वट वृक्ष के निचे किया जाता है.
कुछ साधना अमावस के दिन तो कुछ को पूर्णिमा के दिन किया जाता है. प्रत्येक साधना के लिए मंत्र अलग है और उसी के अनुसार हवन का विधान है.
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यक्षिणी का स्वरूप और साधना का तरीका
साधक के लिए यक्षिणी के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए साधना करना उतना ही जरुरी है जितना की साधना का सही तरीके से करना.
अगर आप yakshini tantra के अनुसार अगर साधक माँ के स्वरूप में यक्षिणी की साधना करता है तो वो उसे धन, राजस्व, उत्तम द्रव्य देते हुए पुत्र की तरह रक्षा करती है.
साधक को ना सिर्फ विवाह हेतु उत्तम कन्या मिलती है उसका प्रेम जीवन काफी अच्छे से गुजरता है.
प्रिय के रूप में की गई साधना में यक्षिणी साधक को सभी तरह के एश्वर्य देती है लेकिन अगर साधक अपनी विवाहित स्त्री को छोड़कर पर स्त्री गमन करता है तो उसकी समस्त सिद्धि नष्ट हो जाती है.
सुर सुन्दरी यक्षिणी कौन होती है ?
सुर सुंदरी यक्षिणी के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है की यक्षिणी में ये सबसे सुन्दर होती है. जिस तरह हर यक्षिणी की अलग गंध होती है वैसे ही इस यक्षिणी की गंध साधक को मदहोश कर देने वाली होती है.
ये साधक को सुन्दरता, एश्वर्य प्रदान करती है और इनकी वजह से साधक खुद को हर जगह से सुरक्षित महसूस करता है.
सुर सुंदरी जैसे की नाम से साफ है ये बेहद सुन्दर होती है इसलिए आप इनका ध्यान प्रेमिका के रूप में भी कर सकते है.
ये आपके लिए एक वास्तविक प्रेमिका की तरह व्यव्हार करती है और माँ के स्वरूप में करने पर आपको दिव्य रूप की प्राप्ति होती है साथ ही आपका साथी भी आपके अनुकूल होता है.
yakshini tantra में इस साधना को करने के लिए साधक का स्थिर होना आवश्यक है.
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सुर सुंदरी यक्षिणी साधना
सुनने में आता है की ये साधना भैरव द्वारा प्रदान की गई है. राजस्व प्राप्ति जैसे की नौकरी में सफलता, प्रमोशन और राजकीय कार्यो में सफलता के लिए ये साधना की जाती है.
अगर आपको किसी तरह से बड़े कामो में परेशानी का सामना करना पड़ता है तो आपको ये साधना जरुर करनी चाहिए.
सुर सुंदरी यक्षिणी ध्यान
पूर्णचन्द्राननां गौरीं विचित्राम्बरबारिणीम् । पीनोन्नतकुचारामां सर्वज्ञानभयप्रदाम्
विनियोग
ॐ अस्य श्री सुर सुन्दरी साधनं दुर्वासा ऋषिरनुष्टुम्छन्दः उन्मत्त भैरव देवता मम अभीष्टकार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
sur sundari yakshini साधना सामग्री
yakshini tantra में इस यक्षिणी साधना में लिंग पूजा का विशेष महत्त्व है. इस साधना में लिंग पूजा का विशेष विधान है, अतः यक्षिणी एकलिंग, तांत्रोक्त तीन कार्य सिद्धि रुद्राक्ष सुर सुन्दरी यन्त्र, चित्र आवश्यक है.
इसके अलावा पूजन में धूप, दीप, नैवेध, गंध, चन्दन, कपूर और सुपारी की भी आवश्यकता रहती है.
अष्टमी के दिन प्रारम्भ की जाने वाली यह साधना प्रातः प्रारम्भ कर सर्वप्रथम अपना दैनिक पूजन कर जन आचमन कर एक माला ” ॐ सहस्रार हुं फट् मन्त्र से दिग्बन्धन करें, साधक पीले वस्त्र धारण कर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने सारी सामग्री रख कर पूजन व साधना प्रारम्भ करें.
हाथ में जल लेकर दरिद्रता निवारण हेतु प्रार्थना कर दृढ़ मन से पूरा विधान संकल्प कर ध्यान मन्त्र का उच्चारण करते हुए जिस प्रकार की भावना हो अर्थात् माता, बहन या प्रिया, उसी के अनुसार निवेदन करें.
पूजन में सर्वप्रथम यंत्र एवं चित्र की पूजा चन्दन तथा गन्ध से करें, एक ओर दीपक तथा दूसरी ओर धूप जलाएं. चित्र के आगे चांदी के वर्क में लिपटा पान का बीड़ा तथा नैवेद्य अर्पित करें.
रात्रि के समय मंत्र जप प्रारम्भ करें. यह अनुष्ठान अष्टमी से प्रारम्भ कर नित्य एक हजार मंत्र जप सम्पन्न करना आवश्यक है.
साधक को साधना काल के दौरान भूमि शयन तथा नमक खटाई रहित भोजन करना चाहिए। सामने जो यक्षिणी एकलिंग स्थापित है उसका भी पूजन चन्दन से करना चाहिए.
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yakshini tantra सुर सुंदरी यक्षिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरि स्वाहा ॥
नित्य नवीन धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर इस मंत्र का जप करना आवश्यक है. कुछ साधक को एक सप्ताह कुछ को एक पक्ष और कुछ को एक माह में सफलता मिलती है. साधना में जब सफलता प्राप्त होती है तो यक्षिणी सुर सुन्दरी उपस्थित होती है, उस समय उसे जल का अर्ध्य अर्पित करें.
तब यक्षिणी की ओर से प्रश्न आता है दत्याय प्रणयं मन्त्रो कृतो सा त्वं किमिच्छसि (हे प्रिय साधक तू क्या चाहता है).
तब साधक को उत्तर देना चाहिए- देवि दारिद्रयदग्धोस्मि तन्मे नाशय नाशय (हे देवी में दरिद्रता की अग्नि में जल रहा हूं उसे नष्ट करो नष्ट करो) ।
तब सुर सुन्दरी सन्तुष्ट होकर साधक को दिव्य धन धान्य एवं दीर्घायु प्रदान करती है.
साधक जिस भावना से साधना करता है सुर सुन्दरी यक्षिणी उसी रूप में पालना करती है, उन्मत्त भैरव कहते हैं कि सुर सुन्दरी साधना से तो साधक मन में जो भाव लायेगा उसी के अनुसार फल प्राप्त होगा.
इस साधना में सिद्धि से साधक राजत्व प्राप्त करता है, पूर्ण सिद्धि प्राप्त साधक तो स्वयं राजा के समान बन जाता है. यक्षिणी साधना के तीनों प्रयोग साधक को एक-एक कर अवश्य सम्पन्न करने चाहिए.
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sur sundari yakshini sadhna and yakshini tantra final word
yakshini tantra में sur sandri yakshini की साधना को उत्तम साधनाओ में से एक माना गया है जिसे साधक माँ और प्रेमिका दोनों स्वरूप में सिद्ध कर सकता है. जितनी भी यक्षिणी की साधना है उन्हें करने से पहले पूरी जानकारी ले लेना बेहद जरुरी है.
अगर आप कोई साधना कर रहे है तो सबसे पहले आपको अपना साधना करने का उदेश्य पता होना चाहिए. इसके साथ ही ऊपर शेयर किये गए साधना से जुड़े नियम का पालन करना भी बेहद जरुरी है.
सभी साधना में आपको इन नियम को फॉलो करना होगा. इस साधना में आपको रात के की गई साधना के बाद जो समय बचता है तभी सोना होता है. दिन में सोना वर्जित है इसलिए आपको दिन में बिलकुल भी नहीं सोना चाहिए और अगर नींद आती है तो उसे कण्ट्रोल करने का अभ्यास साधना से पहले ही कर लेना चाहिए.
इस तरह की साधना में सबसे ज्यादा थकावट मानसिक थकान होती है इसलिए आपको इसका ध्यान रखना चाहिए.
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