मंत्र साधना के बारे में हम काफी कुछ बात कर चुके है. अगर आप यंत्र साधनाओ में रूचि रखते है तो यंत्र निर्माण विधि से जुड़ी महत्वपूर्ण बातो को ध्यान में रखते हुए घर पर ही आकर्षण, वशीकरण, स्तम्भन, मारण जैसी क्रियाओ में काम आने वाले यंत्र का निर्माण कर सकते है.
यंत्र निर्माण विधि यानि घर घर पर यंत्र निर्माण के दौरान किन किन बातो को ध्यान रखना चाहिए.
आपको ऐसी कुछ बातो का ध्यान रखना चाहिए जो यंत्र निर्माण के दौरान काम आती है. सबसे ज्यादा यंत्र निर्माण Lottery and lotto number से जुड़े है.
आज भी कई जगह लाटरी जीतने का यंत्र बनाने की कोशिश की जाती है मगर सफलता नहीं मिल पाती है.
हिंदू धर्म में यंत्रों का बहुत बड़ा महत्व है. किसी भी पूजा या यज्ञ में यंत्र का बहुत महत्व होता है. प्राचीन काल से मनुष्य यंत्रों का निर्माण एवं उनका प्रयोग करता रहा है.
आर्थिक स्थिति को सही करने के लिए, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए, देवी-देवताओं को खुश करने के लिए. कई तरह के यंत्र प्राचीन काल से ही इस धरती पर मौजूद हैं.
यन्त्र एक विशेष प्रकार की ज्यामितीय संरचना है. इसमें विशेष तरह की आकृति, चिन्ह अथवा अंकों का प्रयोग किया जाता है.
चिन्ह तथा रेखाओं, बिन्दुओं वाले यन्त्र अतीव शक्तिशाली होते हैं और इनका निर्माण तथा प्रयोग कठिन होता है. यंत्र का सही प्रयोग करने के लिए आपको यंत्र निर्माण विधि की विधि का पता होना चाहिए.
अंकों वाले यन्त्र सामान्य शक्तिशाली होते हैं और इनका निर्माण तथा प्रयोग अपेक्षाकृत सरल होता है.
हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग यन्त्र होते हैं,एक ही प्रकार के यन्त्र हर व्यक्ति पर प्रयोग नहीं किये जा सकते. यंत्रों का प्रयोग अति विशेष दशा में तथा बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए अन्यथा इनके दुष्परिणाम बड़े भयंकर हो सकते हैं.
यंत्र निर्माण विधि और अर्थ ये कैसे करते हैं काम?
यन्त्र बहुत तीव्र गति से कार्य करते हैं, अतः लाभ और हानि दोनो ही तेजी से होती है. सही तरह से बना हुआ यन्त्र ग्रहों की ऊर्जा को अनुकूल बना देता है. गलत तरीके से बना हुआ यन्त्र जीवन में आफत ला सकता है.
यंत्रों के निर्माण और प्रयोग की विधि गोपनीय है अतः सही यन्त्र मिल पाना काफी कठिन है. जहां तक हो सके यंत्रों के प्रयोग से दूर रहें क्योंकि एक भी गलत बिन्दु आपके लिये समस्या पैदा कर सकता है.
यंत्र निर्माण विधि के लिए ऐसी कुछ बातो का नियम पालन आवश्यक है जो यंत्र निर्माण विधि और यन्त्र सिद्धि में महत्वपूर्ण है और बगैर उनके साधन के आप यन्त्र को साध नहीं सकते है.
- सर्वप्रथम यन्त्र-गायत्री के मन्त्र द्वारा यन्त्र में प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक है. यन्त्र गायत्री का मन्त्र इस प्रकार है
‘यन्त्रराजाय विग्रहे महायन्त्राय धीमहि तन्नो यन्त्रः प्रचोदयात्.”
इस मन्त्र द्वारा यन्त्र को चारों ओर से वेष्ठित करना चाहिए. फिर सर्वतोभद्र मण्डल में, आठों दलों में कलशों की स्थापना कर, उसके ऊपर यन्त्र को रखना चाहिए. मण्डल के चारों कोनों में चार कलश स्थापित करके प्रत्येक कलश पर हाथ रखकर –
“श्रीं ह्रीं कौं
इन तीन अक्षरों वाली विद्या में कूर्च-बीजों को लगाकर एक हजार बार जप करना चाहिए.
फिर उस यन्त्र को चारों कलशों के जल द्वारा, अभिषेक के मन्त्रों से अभिषिक्त कर, गंध पुष्पादि से पूजन कर, प्राण प्रतिष्ठा के मन्त्रों से यन्त्र में यन्त्र- देवता की प्राण-प्रतिष्ठा करके पूर्वोक्त यन्त्र-गायत्री के द्वारा पोपचार पूजन कर, बाहाल, सुवासिनी तथा कन्याओं को भोजन करना चाहिए तथा उन्हें दक्षिणा देकर आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए.
- इसके बाद जिस अंग में यन्त्र को धारण करने का निर्देश किया गया है, उसी अंग में यन्त्र को धारण करना चाहिए. यंत्र निर्माण विधि और घर पर निर्माण के दौरान इसका ध्यान रखे.
- जहाँ किसी विशिष्ट वस्तु पर यन्त्र को लिखने का विधान न दिय गया हो, वहाँ यन्त्र को भोजपत्र पर लिखना चाहिए.
- जहाँ यन्त्र-लेखन के लिए किसी विशेष द्रव्यका विधान न हो, वहाँ उसे गोरोचन, कपूर, केशर, कस्तूरीगोरोचन, चन्दन, अगर अथवा गजमद में से किसी भी एक वस्तु के द्वारा लिखना चाहिए.
- जहाँ यन्त्र लेखन के लिए किसी विशेष प्रकार की लेखनी (कलम) का उल्लेख न हो, वहाँ सोने की सलाई से लिखना चाहिए
- जहाँ यन्त्र को किसी वस्तु विशेष में भर कर धारण करने का उल्लेख न हो, वहाँ उसे सोने या तांबे के ताबीज में भरकर धारण करना चाहिए. जहाँ त्रिलोह के ताबीज का उल्लेख हो, वहाँ सोना, चांदी और तांबा’ – इन तीनों धातुओं के मिश्रण से निर्मित ताबीज समझना चाहिए.
- जहाँ यन्त्र को किसी विशिष्ट अंग में धारण करने का उल्लेख न हो, वहाँ पुरुष को अपने दायीं भुजा तथा स्त्री को अपनी बायीं भुजा में धारण करना चाहिए.
- जिस यन्त्र के साथ जिस मन्त्र के जप का निर्देश किया गया हो, उस मन्त्र का विधिपूर्वक जप करना चाहिए
- मित्रता के लिए यन्त्र लिखना हो तो मुँह में मिश्री अथवा गाय का घी रखकर लिखें यदि मारण उच्चाटन के लिए लिखना हो तो सेघा नमक एवं नीम का पत्ता मुंह में रख लें. जिह्वा स्तम्भन के लिए लिखना हो तो मुँह में मोम रखकर लिखें. यदि स्वप्न बन्द करने के लिए लिखना हो तो मुँह में नमक रख लेना चाहिए
- लेखनोपरान्त मित्रता के लिए लिखे गये यन्त्र को अगर, तगर, चन्दन पूरा, गूगल, मिश्री, गाय का घी, शहद, कपूर, दाल चीनी, जायफल एवं मेवा – इन्हें एकत्र करके इन्हीं की धूप देनी चाहिए. अलग अलग उदेश्य के लिए अलग अलग बातो का यंत्र निर्माण विधि के दौरान ध्यान रखना चाहिए.
- मारण उच्चाटन के लिए लिखे गये यन्त्र को सेंधा नमक तथा नीम के पत्तों की धूप देनी चाहिए. जिह्वा स्तम्भन के लिए लिखे गये यन्त्र को मोम कीधूप देनी चाहिए.
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दूर देशस्थ स्त्री-पुरुष को आकर्षित करने वाला ‘माणिभद्र यन्त्र’
भोजपत्र के ऊपर आगे प्रदर्शित चित्र में दिखाये अनुसार तीन रेखाओं वाले एक चतुष्कोण यन्त्र को, जिस के भीतर पाँच रेखाओं की कल्पना की गई हो, गोरोचन ‘कु’कुम तथा लाल चन्दन द्वारा लिखें.
पहली रेखा में विसगं युक्त पाँच ‘स’ कार बीजों को लिखकर अन्त में ‘इ’ कार बीज को लिखें.
दूसरी पंक्ति में ‘सः, सः, क्रों, ह्रीं क्रों इन पाँच बीजों को लिखें. तीसरी पंक्ति में जहाँ ‘राम’ शब्द लिखा है, वहीं जिस व्यक्ति को आकर्षित करना हो, उसका नाम लिखें.
चौथी पंक्ति में ‘ह्रीं क्रीं ह्रीं क्रीं’ – इन चार बीजों को लिखें. पांचवीं पंक्ति में ‘ह्रीं क्रीं ह्रीं द, र’ इन पाँच बीजों को लिख कर, यन्त्र को संपूर्ण करें. इस प्रकार यन्त्र का जो स्वरूप तैयार होगा उसका फोटो निचे दिया गया गया है.
यंत्र निर्माण विधि की प्रक्रिया घर पर ही कर ले.
यन्त्र लिखने के पश्चात् उसका गंध श्रादि से विधिवत् पूजन करें. तत्पश्चात् उसे एक लाल रंग के सूत में बाँध कर रख दें.
अब अपने शरीर के उबटन से एक मनुष्याकार मूर्ति तैयार करके उस मूर्ति के हृदय में पूर्वोक्त विधि से बनाए गये यन्त्र को रखे.
उसे उबटन से ढक कर तीन दिन तक, तीनों सन्ध्याओं के समय खेर की श्रग्नि में तपते हुए निम्नलिखित मन्त्र का जप करें
“ॐ अमुक वेगेन आकर्षय माणिभद्र स्वाहा”
यंत्र निर्माण विधि में जिस स्थान पर ‘अमुक’ शब्द आया है, वहां जिस व्यक्ति को “आकर्षित करना हो, उसके नाम का उच्चारण करना चाहिए. इस माणिभद्र यन्त्र के प्रभाव से देशान्तर में स्थिति साध्य-व्यक्ति आकर्षित होकर साधक के पास चला आता है.
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How to make Yantra at home in Hindi Final conclusion
ऐसा माना जाता है की वीर भगवान मणिभद्र ने खुद तापन शोषण आदि की क्रिया द्वारा इस मन्त्रेश्वर का पूजन किया था.
जिन साधक ने इस यन्त्र का निर्माण किया है वीर मणिभद्र उनकी रक्षा और सहायता खुद करते है. यंत्र निर्माण विधि के लिए आप घर पर ही इसका अभ्यास कर सकते है.
अगर आप वशीकरण या फिर आकर्षण की साधना करने के बारे में सोच रहे है तो ये यन्त्र साधना निर्माण आपके लिए सहायक हो सकता है.
शब्दों और मन्त्रों को आकृतियों मे ढालकर यन्त्र बनाये जाते हैं. ये आकृतियां विशेष तरह की होती हैं और इन्हे विशेष नक्षत्रों में बनाया जाता है.
आकाश मंडल और वातावरण की ऊर्जा को एकत्र करने लायक किया जाता है.
आकृतियों के बन जाने के बाद इनमे शब्दों को जागृत किया जाता है फिर इसे विशेष नक्षत्र मे प्रयोग किया जाता है.
यह वातावरण और आकाश मंडल से ऊर्जा खींचकर प्रयोग करने वाले व्यक्ति तक पहुंचाता है. यंत्र निर्माण विधि की प्रक्रिया के दौरान आपको इन सब बातो का ध्यान रखना चाहिए.
दूर आकर्षण के लिए हम पहले ही दिक्पाल साधना के बारे में बात कर चुके है. ये साधना आपको दूर बैठे व्यक्ति को आकर्षित करने में help करती है.
अगर आप यन्त्र साधना के बारे में और ज्यादा जानना चाहते है तो निचे दी गई बुक डाउनलोड कर सकते है.
Download Book मंत्र साधना विधि राजेश दीक्षित हिंदी बुक पीडीऍफ़