क्या आपने कभी सुना है की किसी इन्सान को अचानक ही आग की लपटों ने घेर लिया और देखते ही देखते उसकी जलकर मौत हो गई. इस तरह की घटना को spontaneous human combustion कहते है.
ऐसी आग से जलना जो बाहर से नहीं बल्कि इंसानी शरीर के अन्दर से लगती है. इस आग को नीली आग यानि Blue fire कहते है क्यों की इसका कलर लाल नहीं बल्कि नीला होता है.
Spontaneous combustion theories के अनुसार हमारा शरीर जब अन्दर से जलता है तब ये कुछ ही देर में शरीर को राख में बदल देता है.
आमतौर पर आग से हमारी बॉडी पूरी तरह जलने में काफी वक़्त ले सकती है लेकिन, इस तरह अचानक ही आंतरिक दहन की प्रक्रिया में शरीर एक घंटे में राख में बदल जाता है.
दुनियाभर से Spontaneous human combustion Real-life cases देखे जा चुके है. कई लोग क्लेम करते है की उनकी नजरो के सामने ही व्यक्ति जलकर मर जाता है लेकिन, किसी तरह की बदबू महसूस नहीं होती है.
ये आग इतनी अलग थी की इसमें सिर्फ इंसानी शरीर जलता है लेकिन, कपड़े और आसपास की जगह पर आग से जलने का कोई निशान तक नहीं बनता है.
यही वजह है की ये आज तक Unsolved mystery का हिस्सा बना हुआ है. क्या वाकई ऐसा संभव है की अचानक ही शरीर आग पकड़ ले और कुछ ही देर में जलकर राख हो जाए. इसका सबसे बड़ा रहस्य है ऐसी आग जिसका कोई external source of ignition नहीं मिलता है.
आमतौर पर आग को जलने के लिए किसी तरह के सोर्स की जरुरत होती है या फिर अगर आग लगती है तो उसके निशान भी बनते है.
Spontaneous human combustion में ऐसा कुछ नहीं है और शायद इसी वजह से विज्ञान आज तक इसे समझ नहीं पाया है.
आज हम बात करने जा रहे है ऐसे human Spontaneous combustion Real-life cases के बारे में जो सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन सच है. आप चाहे तो इसकी पूरी की पूरी research को पढ़ सकते है.
What is spontaneous human combustion in Hindi
Human spontaneous combustion का मतलब है जलकर मरने की वजह से होने वाली मौते जिनका कोई external source of ignition नहीं होता है. क्या इंसानी शरीर खुद में इतना शक्तिशाली है की सिर्फ कुछ ही घंटो में शरीर को जलाने लायक आग को पैदा कर सके.
हालाँकि इसे हम नीली आग के नाम से जानते है और दुनियाभर में जितने भी केस सामने आये है उन सब में मौत के दौरान शरीर से नीली लपटों निलते हुए देखी गई है.
इस तरह की स्थिति में शरीर अचानक ही आग की लपटों में घिर जाता है और जलकर राख भी हो जाता है लेकिन, उसके आसपास की जगह पर इसका कोई निशान नहीं मिलता है.
कई मामलो में आसपास की जगह पर जलने के निशान मिले है लेकिन, ऐसा बहुत कम केस में ही देखने को मिला है.
इसकी एक खास बात जो इसे रहस्यमयी बनाती है की आखिर जब शरीर जल रहा होता है तब व्यक्ति न तो चीखता है ना ही उसे जलने का अहसास होता है.
आमतौर पर जलने की वजह से हमारी चीख निकल जाती है लेकिन, spontaneous human combustion के दौरान ऐसा कुछ नहीं होता है.
भले ही विज्ञान के पास इसका कोई जवाब ना हो लेकिन spirituality में इसका जवाब मिल सकता है. शरीर रचना विज्ञान के अनुसार इंसानी शरीर में नाभि केंद्र सभी उर्जा का केंद्र है और इसका असंतुलन ही नीली आग यानि Human spontaneous combustion की वजह बनता है.
पांच तत्व और उनका हम पर पड़ने वाला प्रभाव
- जल तत्व : जल तत्व जिनके अंदर ज्यादा जाग्रत है वो इंसान चन्द्रमा की किरणों से प्रभावित होता है ऐसा इंसान भावुक भी होता है और सबसे ज्यादा पूनम के चाँद से प्रभावित होता है.
- अग्नि तत्व : अग्नि तत्व जिस इंसान में जाग्रत रहता है उसके अंदर खून की मात्रा ज्यादा रहती है. और उनका रंग गोरा और लाली लिए हुए होता है. ऐसा इंसान जल्दी गुस्सा होने वाला होता है.
- वायु तत्व : वायु तत्व जिस इंसान में होता है वो ज्यादा चंचल होता है और ऐसे इंसान जल्दी ही किसी की बात पर भरोसा करने वाले होते है.
- पृथ्वी तत्व : पृथ्वी तत्व वाले इंसान ज्यादा गम्भीर और अपने बातो पर टिके रहने वाले होते है. ये लोग धरती से ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा सोखते है खासतौर से जब शवासन में हो.
- आकाश या शून्य तत्व : आकाश तत्व जिस इंसान में ज्यादा से ज्यादा जाग्रत होता है वो इंसान बचपन से ही शांत और अलौकिक होता है इनमे कुछ खास शक्ति भी होती है जो दूसरों को उनकी तरफ आकर्षित करती है. फिर चाहे वो कैसे भी हो.
आपने पढ़ा है की इंसान में ये तत्व कैसे एक दूसरे से ज्यादा जाग्रत होते है. अब बात करते है अग्नि तत्व यानि नाभि केंद्र में छिपी हुई नीली अग्नि के बारे में.
नीली आग और इसका हमारे पांच प्राण से संबध
अग्नि तत्व ऐसा तत्व है जो इंसान को अधीर और गुस्से वाला बनाता है ऐसे इंसान हमेशा जल्दबाजी में रहते है.
लेकिन क्या अपने सुना है blue fire and Spontaneous human combustion के बारे में. अग्नि तत्व को साइंस में नीली आग यानि blue fire कहते है. ऐसा इसलिए क्यों की इसका रंग लाल नहीं नीला होता है.
ये हमारी नाभिकीय शक्ति होती है जो नाभि केंद्र में छिपी हुई होती है.
इसका असंतुलन Human spontaneous combustion की वजह बनता है. आमतौर पर ऐसा माना जाता है की ये शक्ति कैसे काम करती है ये अभी तक अज्ञात है. जिस तरह परमाणु के नाभिक में अनंत उर्जा का भंडार है उसी तरह हमारे नाभि केंद्र में भी उर्जा का भंडार छिपा हुआ है.
इसे किस प्रकार जगाया और उपयोग में लाया जाए ये आज भी विज्ञान के लिए रहस्य बना हुआ है.
इसका सवाल बेशक विज्ञान के पास ना हो लेकिन, आध्यात्म में जरुर मिल सकता है. हमारी कुण्डलिनी और सप्त चक्र की उर्जा का प्रवाह शरीर में बनाए रखने के लिए उर्जा केंद्र का क्लियर रहना बेहद जरुरी है.
तीन नाड़ियाँ इसमें अहम् रोल निभाती है और नीली आग का इनसे गहरा connection है.
- अग्नि तत्व : प्रकृति
- शरीर में निरन्तर बहने वाली नीले रंग की ऊर्जा.
- तापमान – सामान्य अग्नि के उच्च्तम तापमान से 100 गुना ज्यादा.
अब तो आप अंदाजा लगा चुके होंगे की जिस शरीर को जलाने में समय लगता है उसे ये कुछ ही समय में बिना किसी बदबू के कैसे राख बना देती है.
Is spontaneous human combustion real?
विज्ञान इसके existence को accept नहीं कर रहा है और आज भी इस पर खोज कर रहा है लेकिन, इसका मतलब ये नहीं की ये वास्तविक नहीं है.
दुनिया भर से अलग अलग केस सामने आये है और लोगो ने अनुभव शेयर किये है जिसमे spontaneous human combustion का जिक्र है.
अचानक से शरीर का आग पकड़ लेना और victim का बिना किसी दर्द के राख में बदल जाना आसपास के लोगो को आश्चर्य में डाल देता है.
रिसर्च में काफी सारी बाते सामने आयी है लेकिन उन्हें प्रूफ नहीं किया जा सका है. इसकी सबसे बड़ी वजह Spontaneous combustion theories को explain करना है.
आखिर बिना किसी सोर्स के आग कैसे लग सकती है ?
अगर शरीर आग की लपटों में है तो चीखने की आवाज आनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है.
विज्ञान इसे प्रूफ नहीं कर पाया है क्यों की आग लगने के सोर्स अज्ञात है और सबसे बड़ी बात की spontaneous human combustion को control नहीं किया जा सकता है.
आप जब मर्जी शरीर से इस तरह आग पैदा नहीं कर सकते है. अगर विज्ञान की माने तो उन केस की क्या जो दुनियाभर से लोगो द्वारा शेयर किये गए है.
Amazing fact about Spontaneous human combustion
- इतने ज्यादा तापमान के बावजूद जलने का कोई अहसास नहीं होता है.
- जलने पर बू नहीं भीनी भीनी ख़ुशबू आती है. ( ये उन लोगो का अनुभव है जो मौके पर पहुँचते है )
- आसपास उस अग्नि का कोई नामो-निशान नहीं मिलता है न ही कोई नुकसान क्यों की इतनी प्रचण्ड होने के बावजूद ये फैलती नहीं है.
- इसको रोके जाने का कोई उपाय आज तक नहीं मिला है न ही Spontaneous human combustion के symptoms को पहचाना गया है. इसलिए ये आज तक अनसुलझे रहस्य में गिना जाता है.
- Spontaneous human combustion and mythology आपने पौराणिक कार्यक्रम देखे होंगे जिसमे ऋषि मुनि खुद को भस्म कर लेते है ये वही ऊर्जा है जिसे कुण्डलिनी ऊर्जा भी कहा जाता है. इसके बारे में कहा गया है की हर ऋषि मुनि इसे अपने इच्छामृत्यु के लिए जाग्रत करते है.
शरीर में नीली आग के रहस्य पर आध्यात्म का दृष्टिकोण
मनुष्य स्रष्टा द्वारा विनिर्मित इस बहुरंगी संसार का एक घटक है. मानवी काया की संरचना स्वयं में अद्भुत है.
वह अपने आप में एक सर्वागीण प्रयोगशाला है; एक ऐसी प्रयोगशाला, जिसमें अनेकानेक बहुमूल्य एवं अनोखे यंत्र हैं. शरीर एक बहुत बड़े औद्योगिक परिसर के समान है, जिसमें अगणित विद्युतचालित कल-कारखाने लगे हैं.
एक लाख वोल्ट बिजली की शक्ति से चलायमान यह शरीरयंत्र कभी कभी ऐसे विलक्षण क्रिया-कलाप कर बैठता है, जो फिजियोलॉजी विज्ञान की परिधि में नहीं आते.
जहाँ सामान्य विद्युतप्रवाह होना चाहिए था, वहाँ शरीर से प्राणाग्नि के शोले फूट उठते हैं. यह क्यों व कैसे होता है ? आज तक Spontaneous human combustion को control नहीं किया जा सका है.
इसका उत्तर विज्ञान के पास तो नहीं है. हों, अध्यात्म विज्ञान अपनी सूक्ष्मदृष्टि से इन पर पर्याप्त प्रकाश डालता एवं शरीर की अप्रतिम सामर्थ्य का बोध कराता है.
शरीर की प्राण विद्युत संबंधी इस विलक्षणता के मर्म को पदार्थ विज्ञान के उदाहरणों से समझा जा सकता है.
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नाभिक में छिपी उर्जा और शरीर के केंद्र में छिपी उर्जा का भंडार
पदार्थ के नाभिक में प्रचंड शक्ति का भंडार आदिकाल से ही विद्यमान है. पर जब तक उसकी जानकारी नहीं थी, पदार्थसत्ता का मोटा उपयोग ही हो पाता था.
विपुल शक्ति का स्रोत मौजूद होते हुए भी उससे कुछ विशेष लाभ उठाते लंबे समय तक नहीं बन पड़ा. कारण था उन नियमों से अपरिचित होना जो नाभिकीय शक्ति को अर्जित करने के कारण थे.
सिर्फ Spontaneous human combustion ही नहीं आज भी प्रकृति में ऐसे कई रहस्य है जो विज्ञान के लिए अनसुलझे है.
जैसे ही ये सूत्र हाथ लगे कि परमाणु शक्ति को कैसे कुरेदा और कैसे उपयोग में लाया जाए तो युग ने एक महान ने करवट ली.
मनुष्य जाति ने शक्ति के क्षेत्र में डाइनामाइट युग से परमाणु युग में छलाँग लगाई और अब परमाणु शक्ति के आधार पर में बड़े-बड़े सपने देखे जा रहे हैं.
ठीक इसी प्रकार की अनेकानेक असंख्य संभावनाएँ प्रकृति के गर्भ और मानवी पिंड में मौजूद हैं जो अविज्ञात हैं. मनुष्य की काया स्वयं में एक विलक्षण संरचना है.
शरीर शास्त्रियों को अभी सामान्य स्थूल जानकारी मिल सकी है. परमाणु नाभिक की तरह शरीर में भी ऊर्जा का प्रचंड भंडार भरा पड़ा है.
ये उर्जा Blue fire है जिसे आध्यात्म में अग्नि तत्व के नाम से भी जाना जाता है. Spontaneous human combustion की वजह इसी उर्जा के अनियंत्रण को माना जाता है,
उसे किस तरह जगाया और उपयोग में लाया जाए, विज्ञान इससे अभी अपरिचित है. प्रकृति कभी कभी विलक्षण घटनाओं के सहारे इस तथ्य का बोध कराती है कि मानवी काया में इतनी प्रखंड विद्युत भरी पड़ी है कि यदि वह फूट पड़े में तो शरीर को ही भस्मीभूत कर सकती है.
ऐसी Real life case of human Spontaneous combustion जैसी रहस्यमय घटनाओं के उदाहरण आए दिन मिलते रहते हैं.
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Real life case of Spontaneous human combustion – 1
पिछले साल सितम्बर के महीने में ये Spontaneous combustion human cases जो की Irish की सुर्खियों में था जिसमे एक इंसान जिसका सर इसके धड़ के पास पड़ा था और शरीर जला हुआ था लेकिन कही भी आग लगने के कोई निशान नहीं थे.
इसके आसपास की जमीन थोड़ी काली हो गई थी पर और कुछ निशान नहीं मिले.
ये केस भी पहले केस की तरह था लंदन के एक घर में जॉन अपने छत की सीढ़ी पर बैठा था और उदास लग रहा था घर वालो ने जब बात की तो उसने सिर्फ इतना बोला था की वो मरने वाला है लेकिन घर वालो ने उसकी बात को मजाक में टाल दिया.
कुछ देर बाद घरवालों ने देखा की जॉन का शरीर एक तेज नीले रंग की रौशनी से घिरा हुआ है और उसके मुंह पर कोई शिकन कोई दर्द का निशान नहीं था.
घर वाले कुछ कर पाते इससे पहले ही वो राख बन गया था. और वहां के वातावरण में भीनी भीनी खुशबू फैली हुई थी.
ब्रिटेन के एक घर में एक आदमी रहता था उसके घर वाले नहीं थे सिर्फ एक आया जो घर की देखभाल करती थी.
एक सुबह जब वो आई तब घर में कही नहीं दिखा जब उसके रूम की तलाशी ली गई तो वहां बिस्तर के ऊपर राख मिली और पुरे कमरे में भीनी भीनी महक फैली हुई थी.
दुनिया की नजर में सार्वजानिक रूप से शरीर के जलने का केस Polonus Vorstius का है जो 1400 वी शताब्दी के अंत में शराब और औरतो का शौक़ीन था.
एक रात को ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन करने के बाद वो उसे हजम नहीं कर पाया.
वहां खड़े लोगो ने बताया की अचानक से वो आग की उल्टी करने लग गया और कुछ ही देर बाद उसका शरीर आग में घिर गया. वहां खड़े लोगो ने वो शराब पी लेकिन किसी को कुछ भी शिकायत नहीं मिली.
Real life case of Spontaneous human combustion – 2
1967 में इंग्लैंड की बात है एक बस में यात्रा करने वाले ने एक घर की खिड़की में नीली आग को देखा. जब वो वहां गए तो उन्होंने वहां Robert Francis Bailey को पाया जो एक बेघर था.
Jack Angel जो की बार बार जलने की वजह से हॉस्पिटल जा चुके थे. ने अपने Water Heater के manufacturer पर 3 मिलियन डॉलर का केस कर दिया. उनके अनुसार जब भी वो पानी गर्म करने के लिए HEATER के पास जाते है वो जलने लगते है.
Spontaneous human combustion की पुष्टि के लिए जब डॉक्टर को बुलाया गया तब पाया गया की आग बाहर से नहीं लगी थी शरीर के अंदर से बाहर निकल रही है. जिसके बाद jack ने अपना बयान बदल दिया और बाद में इस घटना को अनसुलझे रहस्य को बेच दिया.
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Real life case of human spontaneous combustion – 3
काउडर स्पोर्ट, पेंसिलवानिया में डॉन ई. गास्नेल मीटर रीडिंग का काम करता था. इसी क्षेत्र में एक वृद्ध फिजीशियन डॉ. जॉन इर्विन वेंटले रहते थे.
वृद्ध होते हुए भी वे पूर्णतया स्वस्थ थे. ५ दिसंबर १९६६ को नित्य की तरह डॉन गास्नेल मीटर रीडिंग के लिए निकला. डॉ. जॉन इर्विन वेंटले के दरवाजे पर उसने दस्तक दी.
प्रत्युत्तर न मिलने पर उसने आवाज लगाई फिर भी कोई उत्तर नहीं मिला. वह मकान के ही एक पाइप के सहारे ऊपर के कमरे में पहुंचा.
कारण यह था कि ऊपर कमरे की ओर से एक विचित्र प्रकार की जलने की गंध आ रही थी.
कमरे में पहुँचकर देखा तो वहाँ से हलका नीला धुआँ उठ रहा था. इस Spontaneous human combustion की वजह से वहां का नजारा बिलकुल अलग ही बन गया था.
कमरे की सतह पर राख का ढेर पड़ा हुआ था. अंदर कमरे का दृश्य अत्यंत वीभत्स था. डॉ. वेंटले का दाहिना पैर जूते सहित मात्र अधजली स्थिति में पड़ा था.
अवशेष शरीर के सभी अंग जलकर राख हो गए थे. विशेषज्ञों ने भलीभाँति घटना का अध्ययन किया और अंततः स्वतः जलने की संज्ञा दी.
ऐसा कोई सुराग नहीं मिला जो किसी अन्य प्रकार से आग लगने की पुष्टि कर सके. सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि कमरे से निकलने वाली दुर्गंध मांस के जलने जैसी न होकर मीठी महक से युक्त थी.
Real life case of human spontaneous combustion – 4
इसी तरह की एक घटना जुलाई १९५१ के एक दिन प्रात: सेंट पीटर्स वर्ग फ्लोरिडा में घटी.
‘मेरीरिजर’ नामक एक अत्यंत हृष्ट-पुष्ट महिला अपनी कुरसी पर ही बैठे-बैठे जल गई. इस Real life case of Spontaneous human combustion की विशेषता यह थी कि भयंकर अग्नि शरीर से निकली, उसे जलाती रही पर मात्र एक मीटर के घेरे तक ही सीमित रही.
मेरी का ८० किलो वजनी शरीर पूर्णतया भस्मीभूत होकर चार किलो राख में परिवर्तित हो गया. डॉ. वेंटले की भाँति उसका भी एक पैर अधजला उस घेरे में बच गया था.
खोपड़ी सिकुड़ कर संतरे के आकार में बदल गई थी.
अवशेषों की जाँच के लिए पेन्सिलावानिया स्कूल ऑफ मेडिसिन के फिजिकल एंथ्रोपोलाजी के प्रोफेसर डॉ. विल्टन क्रोगमैन के पास भेजा गया तो खोपड़ी की आकृति को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए. वह एक ख्याति प्राप्त फारेंसिक वैज्ञानिक थे तथा वर्षों का अनुभव था.
अब तक की Real life case of Spontaneous human combustion में ऐसी कोई घटना उनके पास नहीं आई थी कि जलने के उपरांत खोपड़ी सिकुड़कर छोटी हो गई हो.
क्योंकि विज्ञान के नियमानुसार जलने के बाद खोपड़ी को या तो फूल जाना चाहिए अथवा टुकड़े-टुकड़े हो जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस विचित्र अग्निकांड में खोपड़ी का सिकुड़कर छोटा हो जाना निस्संदेह एक आश्चर्यजनक बात है.
अपने Spontaneous human combustion experience के आधार पर उन्होंने यह बताया कि बारह घंटे तक लगातार तीन हजार डिगरी फारेनहाइट तापक्रम पर रहने पर भी शरीर की संपूर्ण हड्डियाँ भस्मसात हो गई हों ऐसा अब तक देखा-सुना नहीं गया था.
पर यह Spontaneous human combustion case अपने में सबसे विलक्षण है, जिसकी यथार्थता पर बिलकुल ही संदेह करने की गुंजाइश नहीं है.
पेरिस १८५१ में घटी एक घटना और भी अधिक आश्चर्यजनक है. ‘ग्रेट मिस्ट्रीज’ पुस्तक जिसके लेखक हैं-इलेनार वान जांड्ट तथा राय स्टेमन. पुस्तक में वर्णित घटना के अनुसार एक व्यक्ति ने अपने एक मित्र से शर्त लगाई कि वह जलती मोमबत्ती को निगल सकता है.
सत्यता को परखने के लिए दूसरे मित्र ने उसकी ओर तुरंत एक जलती मोमबत्ती बढ़ा दी.
जैसे ही उस व्यक्ति ने निगलने के लिए गोमबत्ती को अपने मुँह की ओर बढ़ाया यह जोर से ही चिल्लाया. मोमबत्ती की लौ से उसके होठों पर नीली लौ दीखने लगी.
आधे घंटे के भीतर ही पूरे शरीर में आग फैल गई और कुछ ही समय में उसने शरीर के अंगों, मांसपेशियों, त्वचा एवं हड्डियों को जलाकर राख कर दिया.
Real life case of Spontaneous human combustion – 5
नेशविल यूनीवर्सिटी के गणित विभाग के प्रो. जेम्स हैमिल्टन ने आपबीती एक घटना का उल्लेख किया है. सन् १८३५ में वे उक्त विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे.
अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं कि एकाएक मुझे अपने बाएँ पैर के निचले हिस्से में तीव्र जलन महसूस हुई. झुककर उस भाग को देखा तो स्तंभित रह गया.
जलन वाले भाग से लगभग दस सेमी. लंबी लौ निकल रही थी. यह लौ ठीक उसी प्रकार की थी जैसी कि लाइटर आदि जलाने से निकलती है.
पर कुछ ही क्षणों बाद यह अपने आप बुझ गई. आग किन कारणों से लगी और बुझ गई. यह case of human Spontaneous combustion आज भी हमारे लिए अविज्ञात है.
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Real life case of Spontaneous human combustion – 6
फ्रांसिस हिचिंग की एक पुस्तक ‘दी वर्ल्ड एटलस ऑफ मिस्टरीज’ में सन् १९३८ की एक अमेरिकी घटना का उल्लेख है कि गरमी के मौसम में एक दिन नॉरफाक ब्रॉड्स नामक स्थान पर नौका विहार कर रही एक महिला के शरीर से अग्नि की लपटें फूट पड़ीं. साथ में उसके पति और बच्चे भी थे.
पानी से आग बुझाने का प्रयास किया गया. पर उस भभकती अग्नि पर काबू नहीं पाया जा सका.
वह मेरी कारपेंटर के शरीर को भस्मीभूत करके अपने आप बुझ गई.
Spontaneous human combustion की कड़ी में “रमांटेनियस ह्यूमन कंबशन’ की घटनाओं की श्रृंखला में बिहार के भागलपुर जिले की पाँच वर्ष पूर्व सूर्यग्रहण के अवसर पर घटी एक घटना का उल्लेख यहाँ करना समीचीन होगा. एक युवक अपने घर के आँगन में मौन बैठा था.
बारंबार घर वालों के पूछने पर उसने बताया कि आज उसके जीवन का अंतिम दिन है. घर के सदस्यों ने उसके कथन की ओर ध्यान नहीं दिया.
थोड़ी देर तक वह सूर्य की ओर मुँह किए ताकता रहा. अचानक उसके शरीर से अग्नि की नीली ज्वालाएँ फूटने लगीं.
घर के सदस्यों ने शरीर पर पानी फेंका तथा कंबल से ढँक दिया पर शरीर उस तीव्र ज्याला में बुरी तरह झुलस गया.
आग तो बुझ गई पर उसे बचाया न जा सका. अस्पताल में पहुँचने पर उसने दम तोड़ दिया.
मानवीय काया में छिपी है अनंत उर्जा
शरीर शास्त्रियों का मत है कि शरीर की कोशिकाओं का तापक्रम अकस्मात इतना अधिक बढ़ जाए, ऐसा जीव विज्ञान के अनुसार संभव है.
आग का स्वतः उत्पन्न हो जाना भी एक अविश्वसनीय घटना है. पर उपर्युक्त प्रामाणिक घटनाएँ इस बात को साक्षी हैं कि मानवी काया में ऊर्जा का प्रचंड सागर भरा पड़ा है.
शरीर विज्ञान के अब तक ज्ञात नियमों के आधार पर Spontaneous human combustion यानि शरीर में अचानक आग लग जाने तथा उसके भस्मसात हो जाने के कारणों की अब तक व्याख्या- विवेचना नहीं हो सकी है.
वे सूत्र भी पकड़ में नहीं आ सके, जिनके कारण शरीर का तापक्रम तीन हजार डिगरी फारेनहाइट तक अचानक बढ़ गया.
पर मात्र कारण न समझ में आने से तथ्यों को झुठलाया नहीं जा सकता, घटनाओं की विवेचना वैज्ञानिक आधार पर कर सकने के अभाव में उनकी सत्यता को झुठला दिया जाए, यह संभव नहीं है.
प्रश्नोपनिषद् में एक मंत्र आता है-‘प्राणाग्नय एवैतस्मिन्पुरे जाग्रति’ अर्थात मनुष्य काया रूप पुरी में पाँच प्रकार की प्राणाग्नियाँ जागती रहती हैं.
यह लोहा गलाने वाले विशालकाय कारखाने में लगी हुई प्रचंड अग्नि वाली फरनेसों की तरह है, जिनमें प्राणाग्नि जलती ही नहीं वरन बिजली को निपुल मात्रा में भी उत्पन्न करती है.
कहा जा चुका है कि शरीर में एक लाख वोल्ट प्रति सेंटीमीटर का दबाव होता है.
यह प्राण विद्युत झटका मारने वाली या प्राण लेने वाली नहीं है. उसकी प्रकृति दूसरे प्रकार की है फिर भी वह है बिजली ही नियंता ने इस विद्युत को चक्रों, ग्रंथियों, उपत्यिकाओं, जीवकोश ऊतकों में कैद कर रखा है.
Spontaneous human combustion and spirituality conclusion
क्या आप भी मानते है की इंसानी शरीर आज भी रहस्यों से भरा हुआ है ? जिस तरह नाभिक में छिपी हुई उर्जा का अनंत भंडार उसे खास बनाता है वैसे ही अगर हम ये समझ ले की शरीर के केंद्र में छिपी हुई इस उर्जा का प्रयोग कैसे करना है तो हम क्या कुछ नहीं कर सकते है.
आज दुनिया भर में ऐसे कई Spontaneous human combustion case सामने आ चुके है जो इसकी पुष्टि करते है.
इस बात में कोई शक नहीं है की विज्ञान के लिए आज भी ये एक पहेली है क्यों की विज्ञान की सीमा से परे आध्यात्म की सीमा शुरू होती है.
विज्ञान भी Blue fire यानि अग्नि तत्व को समझने के लिए शरीर शास्त्रियों की मदद ले रहा है.
ऊपर शेयर किये गए सभी Real life case of human Spontaneous combustion इस कथन को मजबूती देते है की नीली आग का अस्तित्व है और ये हमारे नियंत्रण में नहीं है.
अगर आप तिलस्मी जगह के रहस्यों के बारे में और ज्यादा जानना चाहते है तो निचे शेयर किये गए लिंक पर क्लिक कर PDF Book Download कर सकते है.