अगर आप Self-Improvement पर काम कर रहे है तो अपने Self-monitoring के बारे में जरुर सुना होगा. ये एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसमे हम अपने Behavior, Thoughts, And Emotions को मॉनिटर करते है.
ये प्रैक्टिस काफी पावरफुल टूल्स है और इसके जरिये आप अपने आदत पर काबू पा सकते है. आमतौर पर इसके जरिये आप क्या कर रहे है क्यों कर रहे है जैसे सवालों का जवाब पा सकते है.
हमारी अवेयरनेस को बढाने के लिए ये प्रभावशाली अभ्यास है. अगर आप पर्सनल डेवलपमेंट के लिए खुद में बदलाव लाना चाहते है तो आपको इस अभ्यास को जरुर करना चाहिए.
यहाँ हम Self-monitoring के बारे में डिटेल से बात करने वाले है जिसमे किसी आदत और व्यवहार को मॉनिटर करते हुए उन्हें कण्ट्रोल करने के बारे में जरुरी जानकारी शेयर की जाने वाली है.
किसी भी आदत को कण्ट्रोल करने और अपनी चेतना के स्तर को बढाने के लिए आप इसका अभ्यास कर सकते है.
आपके आसपास के social environments and situations के अनुसार आपका self-presentations, emotions, and behaviors क्या रहता है क्यों रहता है इन सबके बारे में आप सेल्फ मॉनिटर जैसी प्रैक्टिस के जरिये बेहतर जान सकते है.
अगर सिंपल शब्दों में समझे तो ये अभ्यास आपको अपनी एक्टिविटी के प्रति जागरूक बनाता है और उसका आपके आसपास क्या असर पड़ता है उसकी स्टडी करते हुए बेहतर बदलाव के लिए तैयार करता है.
What is self-monitoring in communication?
साइकोलॉजी के अनुसार self-monitoring और कुछ नहीं बल्कि self-observation है जिसमे हम उन एक्टिविटी को फॉलो करते है जो हमारी सेल्फ-अवेयरनेस को strong बनाती है.
इसका काम Problematic Behaviors And Thought Patterns की पहचान कर उनमे Positive change लाना है.
इसके काम करने का तरीका सिंपल है. ये आपके एक्टिविटी को मॉनिटर करता है और डाटा कलेक्ट करता है. इस डाटा का विश्लेषण कर प्रॉब्लम का पता लगाया जाता है और उसे पॉजिटिव चेंज से रिप्लेस कर दिया जाता है.
ये न सिर्फ आपके काम में आ रही किसी प्रॉब्लम को ट्रैक कर सकता है बल्कि आपके उदेश्य के दौरान भी अगर किसी तरह की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ रहा है तो उसे भी ठीक कर सकता है.
Self-monitoring को सबसे पहले psychologist Mark Snyder ने लोगो के सामने पेश किया था. उनका सबसे पहला उदेश्य Social Behavior And Group Self-Presentation को समझना था.
समय के साथ इसे Self-Monitoring Of Physical And Mental Health Behaviors में प्रयोग लाना शुरू कर दिया गया जिसका उदेश्य Personal Development And Goal-Setting बन गया था.
Signs of Self-monitoring
अब तक की रिसर्च के अनुसार 5 ऐसे common signs of self-monitoring है जिन्हें आप फॉलो कर सकते है.
- दूसरो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसी बातो का सहारा लेना जो सत्य नहीं है.
- खुद को दूसरो के सामने कूल और अच्छा बनने का दिखावा करना.
- दूसरो को कॉपी करना.
- खुद पर डाउट होना और पब्लिक इवेंट पर जाने से पहले दूसरो का समर्थन हासिल करना.
- क्या कहना है, क्या पहनना है, क्या सोचना है या क्या करना है, इस पर दूसरों से सलाह माँगना.
- दूसरों को खुश करने के लिए लगातार राय बदलते रहते हैं
- वातावरण के आधार पर किसी का व्यवहार बदलना
- सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप अपनी आवाज़ का लहजा बदलना
- अनजाने में दूसरे लोगों की शारीरिक भाषा की नकल करना
- कोई निर्णय लेते समय या टिप्पणी करते समय अपनी स्वयं की प्रवृत्ति पर भरोसा न करना
अगर आप ऐसी किसी स्थिति से गुजर रहे है तो आपको सेल्फ मॉनिटर के जरिये सुधार करने की जरुरत है.
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Types of Self-monitoring
सेल्फ मॉनिटर के मुख्य तौर पर 2 ही प्रकार है या फिर यू कहे की इन्हें 2 जगह पर आप प्रैक्टिस कर सकते है.
- Acquisitive self-monitoring: self-monitoring का ये प्रकार आपके सोशल एक्टिविटी से जुड़ा हुआ है. आप दूसरो की अटेंशन पाने और उनके द्वारा जज होने के लिए किन गतिविधि को फॉलो कर रहे है इन सबको इसमें स्टडी किया जाता है.
आप जो कर रहे है उस पर दूसरो की क्या रिएक्शन है और इसे और ज्यादा बेहतर बनाने के लिए आप क्या कर सकते है इन सबको इसमें observe किया जाता है.
- Protective self-monitoring: दूसरो से रिजेक्ट होने से रोकने के लिए आप जो एक्टिविटी कर रहे है उसे इसमें शामिल किया जाता है. Protective self-monitoring में आप उन आदत को मॉनिटर करते है जो आपको सोशल लाइफ में फिट करती है और दूसरो के लिए जो एक्टिविटी आपको करनी चाहिए उन्हें करते हुए आप दूसरो के साथ खुद का तालमेल फिट कर सकते है.
Self-monitoring vs Self-talk
सुनने में ये दोनों आपको एक जैसे लग सकते है लेकिन इन दोनों में कुछ अंतर है. आइये जानते है सेल्फ मॉनिटर और सेल्फ टॉक के बारे में.
Self-monitoring एक तरह से type of self-observation है जिसमे हम उन आदत और व्यव्हार पर काम करते है जो हमें सोशल लाइफ में दूसरो के साथ तालमेल बिठाने में हेल्प करती है.
वही दूसरी ओर Self-talk में हम अंतर की आवाज पर काम करते है. इसमें हम inbuilt beliefs, unconscious biases, as well as social situations के आधार पर अपने अन्दर की आवाज को सुनने और बदलाव करने पर काम करते है.
हो सकता है की कई बार Self-monitoring आपको uncomfortable situations में एडजस्ट होने में मुश्किल खड़ी कर दे लेकिन, Self-talk आपको हमेशा पॉजिटिव चेंज पर काम करने के लिए प्रेरित करता है.
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Self-monitoring vs Self-awareness
सेल्फ मॉनिटर में हम सोशल एक्टिविटी के आधार पर अपने व्यवहार और नेचर को समझने और बदलने की कोशिश करते है. दूसरी ओर Self-awareness किसी भी व्यक्ति की वो खासियत है जो उसे दूसरो से अलग बनाती है.
आपके अन्दर क्या खास है जो यूनिक है और आपको दूसरो से अलग बनाता है.
बिना किसी बदलाव के आप खुद को स्पेशल फील करवा सकते है. सेल्फ अवेयरनेस के दौरान आप अपने personality, actions, beliefs, emotions, and thoughts को समझ सकते है जो आपको दूसरो से अलग बनाता है.
Mental Health Impact of Self-monitoring
The benefits of self-monitoring की बात करे तो ये हमारे Social behavior को समझने और उसे बेहतर बनाने में हेल्प करता है. ऐसे लोग जिन्हें Introverted Personalities, Social Anxiety, Or Adjustment Issues जैसे issue है उन्हें दूसरो के साथ तालमेल बिठाने में प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है.
उन्हें अपनी लाइफ में Positive And Well-Regulated Self-Monitoring Strategies का इस्तेमाल कर self-improvement करने में हेल्प मिलती है.
अगर आप दूसरो से बात करने या फिर सोशल प्लेस पर Communication के दौरान किसी तरह की प्रॉब्लम का सामना कर रहे है जैसे की शर्म महसूस करना, सही से बोल न पाना या फिर स्टेज का डर, ज्यादा लोगो के बीच खुद को सही तरीके से पेश करने का डर फील कर रहे है तो Self-monitoring आपको ऐसे किसी भी issue से फेस कर उन्हें दूर करने में हेल्प कर सकता है.
इसकी हेल्प से आप सोशल प्लेस पर खुद को self-presentation के लिए flexible बना सकते है. ये आपको ओपन माइंडेड बनाता है जिसकी वजह से आप खुद को दूसरो से कनेक्ट कर पाते है, उन्हें समझ पाते है और उसके अनुसार व्यवहार कर पाते है.
अगर आप Maladaptive Or Negative Self-Monitoring का इस्तेमाल कर रहे है तो ये Chronic Self-Doubt And Self-Esteem Issues पैदा करती है. इसकी वजह से self-consciousness, anxiety जैसी प्रॉब्लम में डाल सकती है.
इस तकनीक के पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह के इफ़ेक्ट है क्यों की ये आपकी मानसिकता को स्टडी कर उसके अनुसार रिजल्ट शो करता है. बेहतर होगा की आप इसके प्रयोग के लिए पहले जरुरी जानकारी जुटा ले.
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Self-monitoring tools for mental health
Mental health and self-monitoring में Tracking Mood, Anxiety, Or Symptoms Of A Mental Health Condition जैसी एक्टिविटी शामिल है. ऐसे कई टूल है जिनका इस्तेमाल आप मेंटल हेल्थ में सुधार लाने के लिए कर सकते है.
- Mood-tracking apps जो आपके मूड को ट्रैक करती है और उसके अनुसार आपका व्यव्हार क्या होने वाला है उसकी प्रेडिक्शन करना.
- Thought recording worksheets जिसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल cognitive-behavioral therapy (CBT) में होता है और ये हमारे negative patterns of thinking की स्टडी कर उनमे सुधार लाने का काम करता है.
- Sleep tracking devices जिनकी मदद से आप sleep patterns को ट्रैक कर सकते है और अगर किसी तरह की प्रॉब्लम है तो उसके लिए किन सुधार की जरुरत है.
- Stress-tracking apps जो guided meditations, breathing exercises, and stress-management tools आपके तनाव को दूर करने में हेल्प करती है.
- Symptom tracking apps जिनकी मदद से आप mental health symptom को track कर सकते है.
- Journaling apps या फिर डायरी जिनके जरिये आप अपने एक्टिविटी को जाँच सकते है और उसके अनुसार अपने अन्दर बदलाव ला सकते है.
ये सब Self-monitoring tools का हिस्सा है जिनकी हेल्प से आप खुद को improve कर सकते है.
Self-monitoring In Clinical Practice
रिसर्च में सामने आया है की positive self-monitoring and behavior changes आपस में कनेक्टेड है और क्लिनिकल प्रैक्टिस के लिए ये काफी हेल्पफुल साबित हो सकता है.
आमतौर पर बदलाव करने से पहले आपको अपने behaviors, thoughts, and emotions को समझना होता है जिसके लिए Self-monitoring सबसे अच्छा जरिया है.
देखा जाए Self-monitoring आपके
- Behaviors, thoughts, and emotions को समझता है.
- पॉजिटिव चेंज के लिए तैयार करता है.
- प्रोग्रेस को ट्रैक करता है और जहाँ बदलाव की जरुरत है वहां जरुरी स्टेप लेता है.
Cognitive-behavioral therapy (CBT) for depression, anxiety के लिए इसका क्लिनिकल प्रैक्टिस करना आपको mental health conditions जैसे की personality disorders, eating disorders को समझने में हेल्प कर सकता है.
इसके अलावा फिजिकल हेल्थ कंडीशन जैसे की diabetes, hypertension, obesity, and chronic pain को ठीक करने में भी हेल्प कर सकता है.
आपके ख़राब व्यवहार के पीछे की वजह को तलाशने, उसे पॉजिटिव बदलाव के साथ ठीक करने और प्रोग्रेस को ट्रैक करने में ये हेल्पफुल है.
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Tips to self-monitor healthily
ऐसे कुछ टिप्स है जिन्हें आप सही फायदे के लिए फॉलो कर सकते है. ये एक ऐसी तकनीक है जिसका आप दोनों तरह से इस्तेमाल कर सकते है इसलिए इसका प्रयोग पॉजिटिव वे में हो ये जरुरी बन जाता है.
इसके लिए आप निम्न टिप्स को फॉलो कर सकते है.
- आपका टारगेट क्लियर होना चाहिए. आप किस तरह के व्यव्हार की वजह से प्रॉब्लम को फेस कर रहे है उन्हें नोट कर ले.
- ट्रैकिंग के लिए आपके पास कौनसी विधि सबसे ज्यादा कारगर है उसका सोच समझ कर चुनाव करे. आप डायरी और पेन, डिवाइस या एप्लीकेशन का सहारा ले सकते है.
- अपने व्यवहार को लेकर honest, truthful, and objective बने रहे. इस बात से फर्क नहीं पड़ता है की आपकी एक्टिविटी में नकारात्मकता या फिर उतार चढाव है आपको उन्हें समझना है.
- हमेशा अपना फोकस सुधार करने में लगाए न की परफेक्ट बनने में. अपनी छोटी से छोटी सफलता का जश्न जरुर मनाए. अगर इसमें फ़ैल हो रहे है तो निराश ना हो बल्कि अपनी कमियों को ठीक करने पर ज्यादा मेहनत करे.
- अपने व्यवहार को ट्रैक करने के पीछे पागल या जुनूनी ना बने. आपको अपने डेली रूटीन को डिस्टर्ब नहीं करना है बस अपनी एक्टिविटी को स्टडी करना है.
- आप अपने रिजल्ट को किसी healthcare professional के साथ शेयर कर सकते है और इसमें सुधार करने को लेकर उनके सुझाव ले सकते है.
- अगर आपको मनचाहे रिजल्ट नहीं मिल रहे है तो healthcare professional की सलाह ले और जरुरत के अनुसार बदलाव कर एडजस्ट करे.
ध्यान दे की आप जो भी बदलाव कर रहे है उसे दूसरो के साथ शेयर नहीं करना है. जितना आप प्राइवेट रहते हुए इस पर काम करते है उतना ही लोग आपको नोटिस करना शुरू कर देंगे.
What is the problem with self-monitoring? final conclusion
क्या हो अगर आप लिमिट से ऊपर बढ़ते हुए self-monitoring को फॉलो करना शुरू कर दे ? ये एक ऐसी तकनीक है जो एक लिमिट के बाद आपको नुकसान भी पहुंचा सकती है इसलिए इसका जरुरत के अनुसार प्रैक्टिस करना चाहिए.
अपने उदेश्य को हासिल करने के लिए आपको इस तकनीक पर पूरी तरह फोकस होने की जरुरत नहीं है.
आप डेली रूटीन को डिस्टर्ब ना करे और न ही अपने इमोशन में हद से ज्यादा दिखावा शामिल करे. जितना हो सके नार्मल रहे और इस तकनीक को लिमिट तक रखे. इसका जूनून रखना आपको मानसिक तनाव दे सकता है इसलिए इसका ज्यादा इस्तेमाल करने से बचे.