दाह संस्कार के नियम क्या है और क्यों अंतिम संस्कार में कुछ खास तरह की प्रक्रिया की जाती है? क्या आपको पता है हिंदू रीति रिवाज के अनुसार मौत 13 दिन बाद तक कुछ खास संस्कार प्रक्रिया को करना बेहद जरुरी होता है.
अंतिम संस्कार का महत्व हिन्दू धर्म में देखने को मिलता है और इसका जिक्र गरुड़ पुराण में पढने को मिलता है.
पिता की मृत्यु के बाद हिंदू रीति रिवाज क्या क्या करने चाहिए और मृत्यु के बाद के कार्य क्या होते है ये हम आज की पोस्ट में जानने वाले है. आइये जानते है अंतिम संस्कार से जुड़ी खास बाते और उनका लॉजिक.
हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार है जो एक व्यक्ति के जन्म से लेकर मरने तक किये जाते है.
सबसे अंतिम संस्कार है मौत के बाद की जाने वाली क्रियाए, कुछ लोग इसे सही मानते है तो कुछ लोग गलत लेकिन आज हम ऐसी कुछ बातो के बारे में बताने वाले है जो आपके लिए शायद उत्सुकता का विषय होगी, दाह संस्कार के बाद कपाल क्रिया, मटकी छेदन, मुंडन और पिंडदान दिखावा नहीं बल्कि आध्यात्मिक और लॉजिक के तर्क पर सही है कैसे ?
आइये जानते है इस पोस्ट में.
दाह संस्कार के नियम और इससे जुड़ी खास बाते
दाह संस्कार के बाद चलने वाली 13 दिन की क्रियाए आज के समय में कुछ लोगो के लिए सिर्फ पंडितो द्वारा पैसे कमाने और अन्धविश्वास मात्र है.
हिन्दू शास्त्र के अनुसार अगर किसी की मौत 8 साल से पहले होती है तो या तो उसे किसी नदी में बहाया जाता है या फिर दफनाया जाता है क्यों की उसका अभी तक संस्कारिक क्रियाओ से जुड़ाव शुरू नहीं हुआ था.
8 वर्ष की उम्र में की जाने वाली जनेऊ संस्कार उसे संसार से जोड़ती है. आज हम दो बातो के बारे में जानने वाले है. पहला दाह संस्कार के नियम और दूसरा मौत के बाद की जाने क्रियाए और उनका महत्व.
किसी के मौत होने के बाद दाह संस्कार के नियम का पालन किया जाता है और इन नियमो का अपना एक तर्क होता है. इनमे जगह और प्रदेश के अनुसार बदलाव देखा जा सकता है लेकिन कुछ मुख्य नियम जो हर जगह हिन्दू धर्म के अनुसार पुरे किये जाते है निम्न है.
दिन ढलने के बाद मौत और दाह संस्कार
अगर किसी की मौत दिन ढलने के बाद होती है तो उसका अंतिम संस्कार रात्रि में नहीं किया जा सकता है क्यों की सूर्य देव को स्वर्ग का प्रतिक माना जाता है.
हिन्दू धर्म / गरुड़ पुराण के अनुसार अगर किसी की मौत रात्रि के समय होती है तो उसे एक साफ जगह भूमि पर सुलाया जाता है और सिरहाने पर एक दीपक जला दिया जाता है जो की एक तरह से उस शरीर के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है.
रात्रि में पारलौकिक शक्तिया जाग्रत रहती है और तलाश करती है किसी ऐसे शरीर की जिस पर आसानी से कब्ज़ा किया जा सके और आत्मा विहीन शरीर में प्रवेश कर वो उस पर कब्ज़ा न कर ले इस लिए इस तरह की सावधानी रखी जाती है.
अनाज की ढेरी पर एक मिटटी का दीपक जला दिया जाता है और किसी एक को उसकी निगरानी में रहना पड़ता है की दीपक बुझ न जाए. कुछ जगहों पर शरीर के चारो और आटे की रेखा बनाए जाने की मान्यताए है.
दाह संस्कार के नियम में से एक है दिशा का महत्व
हम सभी जानते है की उत्तर और दक्षिण दोनों ही दिशा में शक्तिशाली चुम्बकीय प्रभाव है जो की पूरी Earth पर है.
अगर किसी की मौत नजदीक है और उसके प्राण निकलने में कठिनाई हो रही होती है तो उसे उत्तर की ओर सर करके सुला दिया जाता है ताकि उसके प्राण आसानी से निकल सके. जबकि
मौत होने के बाद मृतक का शरीर दक्षिण की और सर करके रखा जाता है. ऐसा माना जाता है की ये दिशा यम देवता की है और मौत के बाद हम उन्हें मृतक को सौंप रहे है. अगर आप भी सोने के दौरान इस नियम का पालन नहीं करते है तो आप निम्न तरह के बदलाव खुद में महसूस कर सकते है.
- मेमोरी का धीरे धीरे कमजोर होते चले जाना.
- खुद में एक आलस्य महसूस होने लगना.
जब हम उत्तर की ओर सर रख कर सोते है तो अचेतन अवस्था में हमारे प्राण का एक सूक्ष्म कण धीरे धीरे चुम्बकीय प्रभाव द्वारा खिंच लिया जाता है. ऐसा रिसर्च भी कह चुकी है की उत्तर की ओर सर करके सोने वालो को earth megnetic field affect करती है.
मटकी और मृतक के कपाल क्रिया जैसे दाह संस्कार के नियम के पीछे की वजह
अंतिम संस्कार के नियम में से एक है मटकी और सर का फोड़ना. ये आपको क्रूरता लग सकती है की आखिर कैसे हम अपनों के शरीर के साथ इस तरह की हरकत कर सकते है लेकिन ऐसा करना बेहद जरुरी है. मृतक के सर को फोड़ने के पीछे 2 मुख्य वजह है.
पहली ऐसा माना जाता है की मौत होने के बाद भी आत्मा का अंश शरीर में मौजूद हो सकता है और शरीर के अंतिम द्वार के रूप में उसका सहस्रार चक्र से बाहर निकलना उसकी सद्गति को बढाता है.
शरीर में कुल 10 द्वार माने जाते है इन्ही में से किसी एक के जरिये आत्मा शरीर छोडती है और सर फोड़ने से आत्मा अगर शरीर के अन्दर फंसी है तो बाहर निकल कर अपनी यात्रा पर निकल जाती है.
दूसरा अगर व्यक्ति किसी तरह के तंत्र क्रिया में कभी जुड़ा हुआ था तो मौत के पश्चात उसकी आत्मा का दरुपयोग किया जा सकता है यानि कोई भी उसे आसानी से अपने वश में कर सकता है. ऐसा करने से कोई भी इसका गलत प्रयोग नहीं कर सकेगा और आत्मा की सद्गति हो जाती है.
दाह संस्कार के नियम के अनुसार मृतक की प्रक्रिमा करना और मटकी फोड़ना एक रस्म है जो सांसारिक बंधन तोड़ने के बारे में है. मटकी के निरंतर बहते जल के रूप में घाट रही उम्र और अंत में फोड़ने को सभी मोह से नाता तोडना से जोड़ा जाता है.
मौत के बाद की प्रक्रिया और उनका आध्यात्मिक महत्व
दाह संस्कार के नियम के साथ साथ कुछ ऐसे संस्कार है जिनका हिन्दू धर्म में पालन किया जाता है. इनमे पिंडदान, मुंडन, मृत्यु भोज और फूल ( अस्थि ) का गंगा में विसर्जन शामिल है. इन सबका अपना अपना महत्व है और इनका पालन करना हिन्दू संस्कृति में बेहद जरुरी माना गया है.
दाह संस्कार के नियम के बाद पिंडदान करना क्यों है बेहद जरुरी
पिंडदान एक ऐसी संस्कार क्रिया है जिसे करना बेहद आवश्यक माना जाता है. मौत के बाद मृतक की आत्मा की गति से पहले उसे एक लम्बी यात्रा करनी पड़ती है.
गरुड़ पुराण के अनुसार वेतरनी नदी हमें आगे की यात्रा करवाती है. ये यात्रा 13 दिन की मानी जाती है और इतने दिन में हमें सभी तरह के अंतिम संस्कार का पालन करना पड़ता है.
पिंडदान करना हमारे पित्तरो को भोग देना माना जाता है.
ऐसा माना जाता है की जो कुछ हम मृत्युलोक में किसी को देते है उसी का अंश हमारे पित्तरो ( पूर्वज ) को मिलता है. हालांकि वैज्ञानिक नजरिये से इसे सिर्फ अन्धविश्वास और ठगी का एक जरिया माना जाता है लेकिन हमारे शास्त्रों में इसका महत्व है इसलिए ऐसा आज भी किया जाता है.
मृत्यु के बाद कार्य में से एक है मुंडन
मुंडन करना भी दाह संस्कार के नियम के बाद बाद पालन किए जाने वाले क्रियाओ में से एक है. मुंडन को शोक का प्रतिक माना जाता है, मोह भंग का प्रतिक माना जाता है और साथ ही मृतक की जिम्मेदारी अब घर के किसी अन्य बड़े व्यक्ति पर आ गयी है का प्रतिक माना जाता है.
ऐसा मान्यता है की हमारे बालो को मोह का प्रतिक माना जाता है और मृतक व्यक्ति अपनों के मोह में में मृत्युलोक में ही फंसे रह सकते है इसलिए मुंडन कर शोक दर्शाया जाता है ताकि मृतक को इस बात का अहसास हो की मोह तोड़ दिया गया है.
मौत के बाद एक घर में सूतक लग जाता है जो की 13 दिन की क्रियाओ के बाद ही शुद्ध होता है. इस दौरान किसी भी तरह के पवित्र कार्य नहीं किये जा सकते है.
मौत के ग्यारहवे दिन पीपल के पेड़ के निचे पिंडदान और बारहवे दिन घर का शुद्धिकरण जल द्वारा किया जाता है. तेरहवे दिन सभी परिवार के लोगो के साथ भोज किया जाता है. कुछ लोगो के अनुसार ये महज दिखावा है वही कुछ लोग इसे पुण्य का काम मानते है ताकि इसका हिस्सा मृतक की आत्मा को मिले और उसकी सद्गति हो.
दाह संस्कार के नियम – क्या हमें अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहिए ?
दाह संस्कार के नियम में से एक है अंतिम यात्रा जिसमे परिवार, आसपास के जान पहचान के लोग अंतिम यात्रा में शामिल होते है. कुछ लोग इसे सही मानते है तो कुछ लोग नहीं.
ऐसा माना जाता है की इस यात्रा में शामिल होना ये दर्शाता है की मृतक के साथ जीते जी आपके साथ जैसे भी सम्बन्ध रहे हो लेकिन मौत के साथ ही सभी तरह के इर्ष्या और बैर ख़त्म हो गए है. जितने ज्यादा लोग उतना ही व्यक्ति का सम्मान ऐसा माना जाता है. कहा भी गया है.
किसी के बारे में जानना है तो अंतिम संस्कार के समय उसके पीछे की भीड़ को देखो. मृतक के अंतिम संस्कार के समय पीछे की भीड़ उसके बारे में बहुत कुछ कह देती है.
ऐसा भी माना जाता है की मृतक की अंतिम यात्रा में शामिल होने से उसके कर्म सुधरते है और आपके हिस्से के पुण्य का अंश उसे मिलता है. ऐसा ही कुछ अंतिम भोज के बारे में माना जाता है. मृत्यु भोज करने से आपके द्वारा किये अच्छे कर्म मृतक की आत्मा को मिलते है. ऐसा करने से आपको कैसा लगता है वो आप पर निर्भर है.
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दाह संस्कार के नियम – अंतिम शब्द
गरुड़ पुराण में अंतिम संस्कार और उसके आगे की यात्रा के बारे में बहुत कुछ बताया गया है. ये वास्तव में है या महज पंडितो द्वारा रचा गया खेल ये कोई नहीं जानता. हिन्दू धर्म शास्त्र में जिन नियम और निर्देशों का वर्णन है वक़्त के साथ वैज्ञानिक तर्क के साथ तुलना की गई जिसमे कुछ को सही तो कुछ को गलत माना गया.
हिन्दू धर्म शास्त्र का ज्ञान हर हिन्दू को होना चाहिए. ऐसा बेहद जरुरी है क्यों की हमारे संस्कार हमारा ज्ञान तय करता है. किसी भी अन्य धर्म में आज अपने धर्म को लेकर सवाल नहीं जितना हिन्दू धर्म में है. इसकी मुख्य वजह है समय के साथ हमारे धर्म शास्त्र को तोड़ मोड़ कर धर्म गुरुओ द्वारा पेश करना और लिखना.
नोट : इन बातो का मकसद किसी धर्म की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है लेकिन सिर्फ किताबी ज्ञान के आधार पर आप अपने धर्म पर सवाल कर रहे है तो ये जान ले की समय के साथ सही जानकारी को नष्ट किये जाने की कोशिश की गई है और उन्हें अलग तरीके से प्रस्तुत किया गया है. हर हिन्दू को अपने सनातन धर्म पर गर्व होना चाहिए और उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए. जल्दी ही हम इस पर एक नयी कड़ी आपके सामने लायेंगे. क्यों और कैसे ?
Dear sir,
Apka bhut bhut thanks. Ye blog suru krne ke liye isme bhut kuchh sikhne ko milta h. Sir is post me jo apne btaya h ki martik ke vyavhar ka pta uske pichhe ki bheed se lgta h sir Maine bhi bujurgo se aisa hi suna h. But Sir kuchh chance aise hote hain ki antim sanskar aise time krna mjburi ho jati h ki log chahker bhi usme shamil nhi ho Pate hain to Sir aisi situation me kaise pta lgta h ki chhod kr Jane vala kaisa tha ya fir usne kaise karm kiye hain. Sir agr apke beshkimti time me se kuchh time nikal sko to plz sir btana jrur apki bhut kripya hogi.