क्या आप जानते है की बार बार कोशिश करने के बावजूद आप वशीकरण में फ़ैल क्यों हो जाते है ? आपने शायद ही वशीकरण के लिए काली-सिद्धि की अनिवार्यता के बारे में पढ़ा होगा.
दरअसल हमारे शरीर में जो 7 उर्जा केंद्र होते है उनमे से एक चक्र को काली शक्ति का प्रतिक माना जाता है. वशीकरण में इस चक्र की सिद्धि के बारे में बहुत कम लिखा है लेकिन, वाम मार्गी अभ्यास में इसका बहुत महत्त्व है.
वशीकरण में फ़ैल होने का सबसे बड़ा रीज़न है हमारे अन्दर की उर्जा के स्तर में कमी होना.
देखा जाए तो अनंत उर्जा का भंडार है हमारा शरीर और विचार मात्र से ही हम उर्जा के वेग को बढ़ा भी सकते है लेकिन जब तक हमें वशीकरण के लिए काली-सिद्धि का महत्त्व समझ नहीं आ जाता तब तक ये सब किसी मतलब का नहीं है.
सबसे पहले आपको एक बेसिक सी बात को समझना होगा की हम खुद उस अनंत उर्जा का निर्माण कैसे कर सकते है.
आपने मूलाधार चक्र के बारे में सुना है जो हमें भौतिक वास्तविकता से जोड़े रखता है. हमें एक चक्र से दूसरे चक्र में उर्जा को ट्रान्सफर करना सीखना है और इसके बाद हम अनंत उर्जा को शरीर में मनचाहे तरीके से स्टोर कर सकते है.
सिर्फ मूलाधार चक्र ही है जो सिर्फ सोचने मात्र से active हो जाता है अगर आप इसे सही दिशा दे पाए तो इसका प्रयोग वशीकरण में किया जा सकता है. आज हम इसके बारे में डिटेल से जानेंगे.
वशीकरण के लिए काली-सिद्धि
वशीकरण विद्या को सीखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पहले मूलाधार (काली) की तरंगों को वश में करने का अभ्यास करना जरूरी होता है. वस्तुतः यह प्रत्येक तंत्र-सिद्धि के लिए आवश्यक है. काली की तरंग कम हो तो शरीर दुर्बल व सत्वविहीन होता है.
जीव सुस्त होता है. वह मानसिक रूप से हीन अंश हो सकता है, इसलिए काली की तरंगें भी प्रत्येक जीव के लिए आवश्यक हैं. किंतु यदि ये तरंगें अधिक उत्पन्न होने लगें तो जीव क्रोधी, हिंसक, कामी, परपीड़क, ईर्ष्यालु, क्रूर बन जाता है.
एक और विचित्र बात यह है कि काली रूपी रक्तिम तरंगें अत्यंत आसानी से उत्पन्न होने लगती हैं और ये इतनी शक्तिशाली होती हैं कि जब उत्पन्न होती हैं तो हर तरंगें निष्क्रिय हो जाती हैं. यहां तक कि रुद्र की तरंगें (मानसिक तरंगें) भी इसके सामने बेकार हो जाती हैं.
फलतः विचारने की क्षमता और विवेक नष्ट हो जाता है. यह स्थिति किसी भी तंत्र साधना के लिए खतरनाक है. अगर आप इसका सही दिशा में प्रयोग करना चाहते है तो वशीकरण के लिए काली-सिद्धि का ये प्रयोग जरुर जान ले.
इस स्थिति से बचने के लिए वैदिक ऋषियों ने काली के निग्रह की विधि को महत्व दिया है अर्थात् मन को हिंसा, क्रोध, क्रूरता एवं काम के भाव पर जाने ही न दें. लेकिन यह स्थिति प्राप्त करना बहुत कठिन है.
आज की स्थिति में वशीकरण करना इतना मुश्किल क्यों है ?
आज प्रदूषण भी बहुत है. यह मन को नियंत्रित नहीं होने देता, खासकर काली के मामलों में. वाममार्ग में इसकी एक अत्यंत सरल तकनीक अपनाई जाती है. इससे मन शक्तिशाली होता है, अर्थात् रुद्र की तरंगों की सामर्थ्य बढ़ती है.
आज सबसे आसान तरीका वशीकरण के लिए काली-सिद्धि ही है क्यों की काम भाव और क्रोध ये दोनों तत्व आसानी से उत्सर्जित किये जा सकते है.
वाममार्ग का सिद्धांत है कि मन को मत रोको. बस, चैनल को बदल दो. जैसे एकाएक ही क्रोध उत्पन्न हुआ, तो होने दो. उसे रोकना संभव नहीं है. लेकिन जैसे ही क्रोध उत्पन्न हो, ऐसी बातों का स्मरण करने लगो, जो कोमल भाव से युक्त हों.
क्रोध तुरंत गायब हो जाएगा. दुबारा वह उत्पन्न हुआ भी तो इतना शक्तिशाली न होगा कि विचारने की क्षमता ही न रहे. तब उस क्रोध की शक्ति का उपयोग किया जा सकता है.
“इस तकनीक का प्रयोग वाममार्गी साधनाओं में व्यापक रूप से होता है. इसके सहारे काम-शक्ति को नियंत्रित करके दूसरे चैनल (चक्र) पर ले जाया जाता है, जहां वे उस चक्र की तरंगों में परिवर्तित हो जाती हैं. वाम मार्ग में वशीकरण के लिए काली-सिद्धि का सबसे ज्यादा महत्त्व है क्यों की इस उर्जा को बनाने में समय नहीं लगता है.
जैसे काम-भाव में डूबकर काम-ऊर्जा को आमंत्रित कर लिया. उसके उत्कर्ष पर अचानक ही किसी कोढ़ी का ध्यान किया. तुरंत चक्र बंद हो जाएगा. काम-ऊर्जा का चढ़ाव उतरने लगेगा. यह उतरता हुआ समय इसे दूसरे चक्र पर खींचने का होता है.
सांस को खींचकर उसे मेरुदंड में ऊपर की ओर धक्का दिया जाता है. आप जैसे ही पुनः अपना ध्यान काम-क्रीड़ा की ओर मोड़ेंगे, फिर से काली का चक्र चलने लगेगा. यह क्रिया बार-बार दुहराई जाती है.
वशीकरण के लिए काली-सिद्धि की इस तकनीक का उपयोग करके जीव अनंत काल तक बगैर स्खलन के रति क्रिया कर सकता है. रति-क्रीड़ा में शरीर के सारे नस-स्नायु क्रियाशील रहते हैं.
उपर्युक्त तकनीक के प्रयोग से प्राणायाम करने की भी जरूरत नहीं होती, क्योंकि सांस गहरी होने लगती है. इससे केंद्र की जीवात्मा अधिक सशक्त होती है और उसके ऊर्जा उत्सर्जन की शक्ति बढ़ जाती है.
कारण यह है कि काम -क्रीड़ा के समय काली तरंगों को उत्पन्न करने वाला चक्र इतना तीव्र हो जाता है कि उसे ऊर्जा की आपूर्ति करने के लिए केंद्र को तीन गुणा अधिक ऊर्जा का उत्पादन करना पड़ता है. आप इसका प्रयोग कर सबसे आसान वशीकरण के लिए काली-सिद्धि को पूरा कर सकते है.
इस अभ्यास से विखंडन क्रिया तेज हो जाती है. इसके लिए अधिक वायु की आवश्यकता होती है. लगातार अभ्यास से सूर्य की कार्य क्षमता सामान्यकाल में भी बढ़ जाती है.
मुख्य बात यह है कि मन को रोकने की बजाए उसका भाव ही बार-बार बदल दिया जाता है. इससे पहला भाव गायब हो जाता है. यह ब्रेक का काम करने लगता है और यही इसका नियंत्रण बन जाता है.
अनियंत्रित शक्ति को नियंत्रित करने का यह आसान तरीका है. इससे जब भी तरंगों की गति अनियंत्रित होने लगती है, भाव बदलकर विराम लगा दिया जाता है. आप वशीकरण के लिए काली-सिद्धि के दौरान कल्पना शक्ति का प्रयोग कर सकते है.
इस तरह गति सदा नियंत्रण में रहती है और आवेश सीमा से अधिक नहीं होने के कारण, विचारने की क्षमता भी बनी रहती है. ऐसे में ये तरंगें मानसिक तरंगों के वश में होती हैं. तब इनका उपयोग किया जा सकता है, अन्यथा ये सभी साधनाओं को भंग कर देती हैं.
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वशीकरण के लिए मंत्र – सिद्धि
अगर आप वाम मार्गी अभ्यास करना चाहते है तो इस तरह के वशीकरण के लिए काली-सिद्धि प्रयोग को पूरा कर सकते है. आपको सिर्फ 2 चक्र को साधना है और बाकि के सभी चक्र आसानी से सिद्ध होने लगेंगे.
मान लो की आप ध्यान का अभ्यास कर रहे है. अचानक ही आपके मन में काम भाव आना शुरू हो जाता है आप इससे बचने के लिए क्या करेंगे ? ये समस्या सबसे साथ होती है क्यों की साधना के दौरान या फिर ध्यान के अभ्यास के दौरान हम सब का मन भटकना शुरू हो जाता है.
इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए आपको strong visualization का अभ्यास करना चाहिए. जब मन में काम विचार आने लगे या तो सांसो को लय में लाने की कोशिश करे या फिर अपना मन किसी ऐसी स्थिति पर लगाए जो मन को अप्रिय हो.
तंत्र विद्या में हर देवी-देवता के लिए अलग-अलग मंत्र हैं. एक देवी या देवता के लिए भी कई तरह के मंत्र हैं. इसके साथ ही हर साधना के लिए भी अलग-अलग मंत्र हैं. इस प्रकार इन मंत्रों का वर्ग इस प्रकार बनता है. वशीकरण के लिए काली-सिद्धि का अभ्यास करने से पहले आपको रूद्र साधना का अभ्यास कर लेना चाहिए.
- सिद्ध मंत्र : सिद्ध मंत्र वामतंत्र के मंत्र हैं. इनमें विशुद्ध रूप ध्वनियों को वर्गीकृत करके मंत्र बनाए गए हैं. ये मंत्र अधिक वैज्ञानिक हैं और शीघ्र प्रभावी होते हैं. ये मंत्र शीघ्र सिद्ध भी हो जाते हैं.
- सामान्य मंत्र : वैदिक मंत्र भाव मंत्र हैं. इनमें शब्दों के भाव एवं संगीत लय के भावों को महत्व दिया गया है. ये भी एक वैज्ञानिक सिद्धांत पर निर्मित हैं, पर इनकी सिद्धि देर से होती है.
इसका कारण यह है कि ये वामतंत्र के मंत्रों की तरह बीज ध्वनि के मंत्र नहीं है, बल्कि इनके शब्दों के अर्थ और लय से जो भाव उत्पन्न होता है, उसके आधार पर निर्मित हैं.
सामान्य मंत्र इन्हीं वैदिक मंत्रों के सरलीकृत रूप हैं. इनमें भाव ही प्रमुख हैं, इसलिए भाषा चाहे जो हो, किसी खास भाव से युक्त संगीतमय देव-स्तुति भी मंत्र की तरह काम करती है. कीर्तन इसी सिद्धांत के अंतर्गत फलदायी होता है. वशीकरण के लिए काली-सिद्धि के अभ्यास के लिए कुछ सिद्ध मंत्र निचे दिए गए है.
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वशीकरण के सिद्ध मंत्र
यों तो प्रत्येक वशीकरण साधना के मंत्र अलग-अलग हैं और उन्हें सिद्ध भी अलग-अलग करना पड़ता है, पर ये मंत्र या साधना तभी सिद्ध हो सकते हैं, जब रुद्र की सिद्धि हो गई हो.
रुद्र- मंत्र –
- ओऽऽऽऽऽम् रुद्राय नमः (सामान्य)
- ओऽऽऽऽऽम् महारुद्राय नमः रुद्र – मंत्र
- ओऽऽऽऽऽम् हं सं अं हं सं फट्स्वाहा (सिद्ध)
सिद्धि-प्रक्रिया
वशीकरण के लिए काली-सिद्धि के किसी भी मंत्र को सिद्ध करने से पूर्व आप उसे खूब अच्छी तरह कंठस्थ कर लें. इसमें उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखें. इससे मंत्र सिद्धि में सुविधा होगी.
रुद्र की सिद्धि करने से पूर्व 9 दिन तक हमें इस संबंध में की जाने वाली सभी तांत्रिक क्रियाओं को सुचारू रूप से संपन्न कर लेने एवं श्वास आदि के नियंत्रण को परख लेना चाहिए. इन दिनों इस मंत्र का भी सुचारू रूप से सस्वर पाठ करने का अभ्यास कर लेना चाहिए. ये वशीकरण के लिए काली-सिद्धि के लिए बेहद जरुरी है.
यहां यह ध्यान रखने की बात है कि मंत्र के प्रभाव का मुख्य सार उसका कंपन (वाम मंत्र) या भाव (वैदिक मंत्र) है. इन दोनों के लिए मंत्र को पढ़ने की लय, कम्पनावृत्ति का ज्ञान होना आवश्यक है. यह इस पुस्तक में बताना संभव नहीं है.
याद रखें, मंत्र के शब्द या अक्षर कुछ नहीं हैं. प्रभाव उनका नहीं, ध्वनि कंपन का होता है. यही कारण है कि कोई भी मंत्र जब गुरु के द्वारा दिया जाता है, तभी वह कारगर होता है. गुरु लय एवं कम्पनावृत्ति का भी ज्ञान कराता है.
वशीकरण के लिए काली-सिद्धि की यह स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे किसी गीत को लय के साथ गाया जाए और बिना लय के पढ़ा जाए. दोनों के प्रभाव का जो अंतर होता है, उसे हर कोई जानता है.
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रुद्र मंत्र की सिद्धि
अपनी आसन-भूमि के चारों ओर सवा हाथ गहरा गड्ढा खोद कर, जिसकी चौड़ाई भी सवा हाथ हो, रात्रि में रुद्र को मस्तिष्क में एकाग्र करके 108 बार मंत्र पढ़ते हुए इस खाई को ताजा जल से भर दें. रात में ही इसे गाय के गोबर से लीप दें.
यदि आसन की भूमि सतह से सवा हाथ ऊंची हो या बनाई गई हो तो उसे गोबर से लीपना ही पर्याप्त होता है. चारों ओर गंगा जल या तुलसी के पत्तों से अभिमंत्रित (रुद्र मंत्र से 108 बार) जल छिड़क दें.
आजकल लोग कक्ष या छत आदि पर ध्यान लगाते हैं. हालांकि तंत्र विज्ञान में यह वर्जित है, तथापि कोई अन्य उपाय न हो तो इसे खूब पानी डालकर धो दें. सुखाएं और फिर इस पर कम्बल, मृग या बाघ की खाल या कुश की चटाई डालकर आसन लगाएं.
अगर आप वशीकरण के लिए काली-सिद्धि का अभ्यास कर रहे है तो इस तरह का अभ्यास करना आपके लिए सही रहेगा.
ईशान कोण से नैर्ऋत्य कोण तक की दूरी की कर्ण रेखा को 8 भाग में बांट दें. ईशान की ओर से गिनना शुरू करें. सातवें भाग पर बैठने का आसन लगाएं. मुख ईशान की ओर होना चाहिए.
ब्रह्म मुहूर्त में नित्य क्रिया, स्नानादि से निवृत्त होकर आसन पर बैठें और जीभ को यथासंभव ऊपर की ओर उलट कर सिद्ध बीज मंत्र का जप करें. यह जप मानसिक होता है. इस समय यदि मोटी व गंभीर आवाज वाले ऑडियो प्लेयर (टेप रिकार्डर) पर मंत्र को रिकार्ड करके बजाते भी रहें तो उचित है.
आप चाहे तो वशीकरण के लिए काली-सिद्धि का अभ्यास करते समय कुछ बाहरी माध्यम का सहारा ले सकते है. शोर से बचने के लिए ईयरफोन का प्रयोग करें.
मंत्र का जाप करते समय पूर्णरूपेण चेतना को रुद्र या गणेश की छवि पर एकाग्र रखें. जो लोग इन देवताओं को नहीं मानते (अन्य धर्म वाले), वे इस समय भृकुटि के मध्य में ध्यान लगाएं.
मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार करें. इस समय अनेक लोग कुंभक (प्राणायाम या सुखासन की मुद्रा में सांस को अंदर खींचकर रोकना कुंभक कहलाता है) भी करते हैं, लेकिन मेरा ख्याल है कि इससे जाप में बाधा पहुंचती है.
अत: इस समय पूर्ण ध्यान मंत्र जाप एवं रुद्र के ध्यान में एकाग्र करें. वशीकरण के लिए काली-सिद्धि के दौरान आपको इसका खास ध्यान रखना है.
9 दिन तक इसका अभ्यास कर लेने से मंत्र की सिद्धि में अत्यंत आसानी हो जाती है. मंत्र-सिद्धि का प्रायोगिक स्वरूप हर साधना प्रयोग में अलग से दिया गया है.