त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग क्या हम साधना से पहले या बाद में सम्भोग कर सकते है ? क्या साधना में मिलन करना सही है या ये साधना में बाधा उत्पन करता है. चक्र जागरण और उर्जा के बनने में सम्भोग का क्या महत्त्व है, ओशो ने सम्भोग से समाधी की ओर पर जोर क्यों दिया है और इसे क्यों सही माना है ?
क्या भोग विलास साधना करने में बाधा है या ये एक सामान्य जीवन की तरह अनिवार्य हिस्सा है ?
साधना में अनुभव की कमी या पहले की तरह अनुभव नहीं होते है क्या इसकी वजह मेरा ध्यान भटकना है. वैसे तो साधना काल में सेक्स, हस्त-मैथुन या स्वप्न-दोष को सही नहीं माना जाता है लेकिन आपको समझना होगा की ऐसा क्यों होता है.
ज्यादातर लोगो के मन में आने वाले खास सवाल में से एक है त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग क्या ये सही है ?
क्यों की गृहस्थ व्यक्ति अगर साधना करता है तो उसे क्या इससे बचना चाहिए. त्राटक और मैडिटेशन में क्या हम पहले या बाद में सेक्स करते है ? इस तरह के सवाल आने के बाद आज में अपने अनुभव यहाँ शेयर करने जा रहा हूँ जो की मेरे अपने विचार है.
त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग
जीवन के चक्र में शादी करना और गृहस्थ जीवन की शुरुआत करना सबकी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा है, नर या नारी कोई भी इससे अछूता नहीं है. गृहस्थ जीवन मानव जीवन में एक जरुरी काल है जिसका पालन करना सही भी है और इसके कई कारण भी है.
सभी भाव में काम भाव को सबसे प्रबल वेग वाला माना जाता है और कहा जाता है की जिसने काम भाव को मोड़ना सीख लिया उसके लिए साधना तो सरल बनती ही है साथ ही साथ चक्र संतुलन और जागरण को भी आसानी से अपने अनुरूप बनाया जा सकता है.
सभी सात चक्र उर्जा के द्वारा नियंत्रित होते है, उर्जा की कमी या ज्यादा होना इनमे असंतुलन पैदा करता है जिसकी वजह से साधक को कई परेशानी से गुजरना पड़ता है.
त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग करना क्या ये सही है ? क्या साधना काल में सम्भोग किया जा सकता है ये उन वर्ग की सबसे बड़ी उलझन है जो गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते है या भोग रहे है.
जहाँ तक त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग को लेकर मेरा खुद का अनुभव है मैंने साधना को तीन स्तर पर ही जाना है और कई साधना ऐसी है जिनमे अभ्यास के अलग अलग स्तर है जैसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक.
अगर आप एक गृहस्थ है और इस बात को लेकर कशमकश में है की क्या साधना काल में सम्भोग किया जा सकता है तो आप इसे अपने स्तर पर यु समझे.
किस साधना काल में क्या करे ?
साधना और शारीरिक अनुभव – ऐसी साधना जो आपके अन्दर शारीरिक बदलाव लाती है मतलब सामान्य साधना अभ्यास जैसे त्राटक और ध्यान द्वारा खुद के पर्सनल डेवलपमेंट से जुड़े अभ्यास, इसमें किसी तरह के खास नियम की पलना आवश्यक नहीं और सामान्य जीवन का हिस्सा बनाकर अभ्यास किया जा सकता है.
मानसिक बदलाव से जुडी साधना – त्राटक ध्यान और सम्भोग इस स्तर में भी संभव है लेकिन ध्यान रखना चाहिए की इसका आपके ऊपर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े जैसे की सम्भोग के बाद में भी आपका मन इसमें उलझा रहे और आप अभ्यास करते जा रहे है. आपको इसमें कोई लाभ नहीं मिलेगा.
आध्यात्मिक साधना : spiritual practice of trataka and meditation के इस स्तर में आपको मन की पवित्रता का खास ख्याल रखना पड़ता है. अगर आपका interest spiritual experience में ज्यादा है तो आपको काम भाव की उर्जा को मोड़ना सीखना पड़ेगा.
त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग – साधना में बनने वाली उर्जा
जब हम साधना में बैठते है तो एक उर्जा बनना शुरू हो जाती है ये हमारी आत्मिक उर्जा होती है जो साधना काल में आपके विचारो से बनती है. जिस तरह के आपके विचार होंगे आपकी आत्मिक उर्जा वैसी ही बनेगी. साधना काल में सफलता इसी पर निर्भर करती है इसलिए सबसे ज्यादा जोर एकाग्रता पर दिया जाता है जिससे आपकी उर्जा को सही से एक दिशा दी जाए.
जब साधना काल में हम विचारो के भंवर में फंस जाते है या फिर हमारा मन भटकने लगता है तब आत्मिक उर्जा एक जगह एकाग्र होने की बजाय बिखरने लगती है जिसकी वजह से साधना में हम खुद को उर्जा-रहित महसूस करने लगते है.
कई बार तो साधना से उठने के बाद आप खुद को थका हुआ / कमजोर भी महसूस करते है ये थकावट मानिसक होती है.
विचारो से बनती है उर्जा जो निर्भर करती है की आपके विचार कैसे होते है. मान लो आप त्राटक अभ्यास कर रहे है और आपका पूरा ध्यान साधना में है. इस दौरान आप जैसे विचार देते है आपको खुद में वैसा ही बदलाव महसूस होने लगता है. ऐसा इसलिए क्यों की आप एकाग्र है और आपके विचार भी सही है.
इसके बजाय जब आप साधना में बैठे रहते है और आपको अनुभव ना हो तो आपका मन भटकने लगता है की अनुभव नहीं हो रहे है / क्या में सही जा रहा हूँ इस तरह के सवाल या शंका आपकी आत्मिक उर्जा के प्रवाह को बाधित करती है.
आत्मिक उर्जा के बिना आप लगे रहते है लेकिन आपको कोई positive sign नहीं मिलते है और अंत में आप साधना को बिच में ही छोड़ देते है.
क्या साधना काल में सम्भोग कर सकते है
इस बारे में दो मत है. पहला साधना काल में सम्भोग कर सकते है ( ओशो सम्भोग से समाधी की और ) दूसरा नहीं कर सकते है. आइये जानते है इनके पीछे की वजह.
जो लोग ये मानते है की सम्भोग किया जा सकता है उनके अनुसार सम्भोग काम भाव पर निर्भर है और काम भाव को दबाया नहीं जा सकता है लेकिन इसके सही प्रयोग से हम अनंत उर्जा के प्रवाह को शरीर में बढ़ा सकते है जो साधना में जल्दी सफलता दिला सकता है. ये बात सच है की काम उर्जा को अगर चक्रों में प्रवाह किया जाए तो चक्र जागरण की सम्भावना बढ़ जाती है.
इसके विपरीत जो लोग सम्भोग को साधना में वर्जित मानते है उनके अनुसार सम्भोग आपकी आत्मिक उर्जा के लिए हानिकारक है.
इससे मन का भटकाव होता है और साथ ही आत्मिक उर्जा का क्षय भी होता है. लेकिन ये पूरी तरह से सही भी नहीं है क्यों की साधना काल में अगर सम्भोग नहीं करते है तो काम भाव आपकी साधना को वैसे भी निष्फल बना देगा.
इसके बारे में सिर्फ इतना कहा जा सकता है की आप खुद को कुछ कसौटी पर कसे और पता करे की
- क्या आप अपनी काम उर्जा के प्रवाह को कभी भी मोड़ सकते है ?
- जो काम उर्जा आपके अन्दर बनती है आप उसे अपने ऊपर हावी होने देते है या फिर कण्ट्रोल कर सकते है.
- क्या आप अपने विचारो द्वारा शरीर और मन को शून्य के स्तर तक कण्ट्रोल कर सकते है ?
किस आयु वर्ग में साधना जल्दी सफल होती है
किशोरावस्था से युवावस्था के बिच यानि 14-2 की उम्र के दौरान अगर साधना अभ्यास किया जाए तो उसे जल्दी सफलता मिलती है. इसकी कुछ खास वजह है जैसे की
- इस उम्र में आपके अन्दर उर्जा का असीम प्रवाह होता है.
- आप कुछ भी कर सकने में सक्षम होते है बशर्ते आपको सही गाइड मिले.
- आपकी आत्मशक्ति बड़ी तेजी से बढती है और अनुभव भी जल्दी होने लगते है.
ऐसा क्यों होता है
किशोरावस्था में हमारे अन्दर energy तो भरपूर होती है लेकिन मार्गदर्शन नहीं. इस उम्र में हम जो देखते है उसे ही सच मान लेते है क्यों की हमारे अन्दर एक अनुभव की कमी होती है जिसकी वजह से जो भी दिशा हम खुद को देना चाहते है दे सकते है.
इस उम्र में आपको किस तरह की गाइड मिलती है उसी आधार पर आप बन जाते है, जैसे की अच्छे या बुरे. आपकी संगत का इसमें बहुत बड़ा योगदान है. लेकिन गलत आदतों की वजह से हम खुद अपनी आत्मशक्ति को नष्ट करने लगते है.
किशोर त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग जैसे मुख्य पहलु को समझ नहीं पाते है और अक्सर इसमें फ़ैल हो जाते है. अगर आप एक किशोर और युवा है और साधना में सफलता हासिल करना चाहते है तो आपको इसे समझना चाहिए.
गृहस्थ व्यक्ति को किस तरह की साधना करनी चाहिए और क्यों
गृहस्थ व्यक्ति सांसारिक कार्य में सबसे ज्यादा उलझा रहता है इसलिए उसे अपने life के according साधना अभ्यास करना चाहिए, त्राटक और ध्यान के जरिये हम खुद का व्यक्तित्व विकास कर सकते है. इसके अलावा आध्यात्मिक पूजा पाठ भी कर सकते है.
अगर आप इस वर्ग में आते है और सोचते है की में आध्यात्मिक शक्तियों को हासिल करने में सफल हो सकता हूँ तो आपको ध्यान रखना चाहिए की काम आपकी उर्जा को बनाता है नष्ट करता है.
सांसारिक कार्यो में फंसे रहने वाले लोगो को शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को strong करना चाहिए ताकि जब भी वो इस उम्र के पड़ाव को पार करे आध्यात्मिक शक्तिया हासिल कर सके, ऐसा इसलिए क्यों की एकदम से कुछ भी नहीं होता है जैसे जैसे उम्र बढती जाती है हमें खुद को शारीरिक और मानसिक तौर पर बदलने में वक़्त लगता है.
त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग – उर्जा बनती है या नष्ट होती है ?
सम्भोग को अगर आप एक औपचारिकता मानते है तो ये आपकी उर्जा को नष्ट करने का माध्यम है. ज्यादातर लोग जो साधना से जुड़े है उनकी नजर में ये सिर्फ संतानोत्पति का जरिया है. संतान होने के बाद उनका सम्भोग से मन उचटने लगता है और त्राटक ध्यान और सम्भोग सिर्फ साधना में सिर्फ एक रोड़ा लगने लगता है. जबकि ऐसा नहीं है.
ओशो ने सम्भोग से समाधी में बताया है की सम्भोग से उत्पन हुई उर्जा आपको चरम तक ले जा सकती है जो समाधी की अवस्था भी हो सकती है.
अगर आप सम्भोग करते समय अपनी उत्पन हुई उर्जा पर ध्यान लगाते है और काम भाव के उत्पन होने पर उसे बारी बारी सभी चक्रों के बिच से गुजारते है तो सम्भोग ना सिर्फ आपको आनंद की अनुभूति करवाता है बल्कि उर्जा के अथाह भंडार को आपके अन्दर उत्पन भी करता है.
ये सब खेल शुक्र का है. योग में अश्वनी मुद्रा जो की घोड़े सबसे ज्यादा करते है के जरिये उन्हें असीम शक्ति और उर्जा मिलती है. यही अश्वनी मुद्रा का अभ्यास अगर मनुष्य करे तो उर्जा को बनते हुए वो स्वयं महसूस कर सकता है साथ ही ये उसे बलशाली भी बनाती है.
साधना काल और हस्त-मैथुन ( masturbation )
सबसे बड़ी समस्या में से एक है हस्त-मैथुन और ज्यादातर लोग इससे गुजरते है.
साधना काल में हस्त-मैथुन की प्रॉब्लम से गुजरना आपकी साधना में असफलता को दर्शाता है. वैसे अगर आप साधना में अच्छे तरह से आगे बढ़ रहे है और उर्जा का प्रवाह भी बढ़ रहा है और फिर आपको स्वप्नदोष होता है या मन में हस्त-मैथुन के ख्याल आते है तो आपको सावधान होने की जरुरत है क्यों की हो सकता है किसी negative energy या व्यक्ति को आपकी उर्जा / आत्मशक्ति में रूचि हो और वो उसे आपसे चुरा रहा हो.
त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग – क्यों आपको इससे बचना चाहिए ?
त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग ये कितना सही है कितना गलत ये आप पर निर्भर करता है और आपके साधना के स्तर पर. अगर आप चाहते है की आपकी साधना सफल हो तो आपको कुछ चीजो का पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए जैसे की सकारात्मकता बनी रहे, मनोबल साधना की ओर रहे, आत्मशक्ति का प्रवाह आपको कण्ट्रोल ना करे इन सब बातो का ध्यान रखना चाहिए.
साधना में अगर अश्लील विचार आते है तो इनसे बचना चाहिए क्यों की ये आपका ना सिर्फ ध्यान भटकाते है बल्कि आपकी आत्मशक्ति को भी निस्तेज करते है.
किसी भी साधना में आपको गलत कार्य करने से बचना चाहिए, मन को स्थिर रखने की कोशिश करनी चाहिए और खुद के अनुभव को गोपनीय बनाए रखना चाहिए.
अगर आप कोई साधना कर रहे है जिसमे आपको सही अनुभव मिल रहे है तो आपको इसे गोपनीय रखना चाहिए यहाँ तक की साधना सफल होने के बाद भी.
कई बार साधना में जब हमारा आत्मशक्ति स्तर बढ़ने लगता है तब मन में अपने आप विचारो की उथल पुथल शुरू होने लगती है जैसे की दुसरो के साथ अपने अनुभव शेयर करना की मै ये कर रहा हूँ, खुद को दुसरो से ऊपर मानने लगना ये सभी दर्शाते है की आपके अन्दर की उर्जा आपको कण्ट्रोल करने की कोशिश करने लगी है.
इस वक़्त आपको खुद को ज्यादा से ज्यादा स्थिर रखने की कोशिश करनी चाहिए.
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त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग – निष्कर्ष
दोस्तों अगर आप किसी तरह की साधना से जुड़े है और आप खुद को अस्थिर महसूस करने लगते है तो आपको किसी योग्य गुरु की शरण में जाना चाहिए. अगर गुरु ना मिले तो मानसिक गुरु भी बनाया जा सकता है बशर्ते आपकी उसमे पूरी श्रधा हो.
ज्यादातर लोगो की तरह मुझे भी गुरु की तलाश है लेकिन spiritual guide के जरिये में हमेशा खुद को स्थिर बनाए रखने का प्रयास करता हूँ. आप भी कर सकते है इसमें अपनी श्रधा रखे और साधना करे.
अगर इस पोस्ट त्राटक ध्यान साधना और सम्भोग से जुडी किसी भी बात या पॉइंट पर आप कुछ कहना चाहते है या आपको शिकायत है तो आप कमेंट के माध्यम से मुझे बता सकते है. ये सभी मेरे खुद के विचार है जो हो सकता है सबके कथन से ना मिले.
Dear sir,
Sadhna ke time better yhi h ki sambhog ki trf dhyan na jaye
Thankyou sir ..
एक सामान्य व्यक्ति जो गृहस्थ जीवन के साथ साथ आध्यत्मिक उन्नति के लिए साधना करना चाहता है उसके लिए सबसे मुश्किल काम अपनी काम भावना और दिमागी उथल पुथल को संतुलित करना होता है ।11 से 15 दिन तक व्यक्ति काम भाव को आसानी से नियंत्रित कर सकता है लेकिन उसके बाद के दिनों में व्यक्ति का काम भाव उसके ऊपर हावी होना शुरू कर देता है ।जिसकी बजह से साधना कर रहे व्यक्ति का मन साधना में कम दिमागी उथल पुथल और काम विचारो की तरफ भटकने लगता है ।
इससे बचने के लिए केवल और केवल एक ही उपाय हो सकता है या तो साधनारत व्यक्ति अपना शयन कक्ष अलग रखे और हल्का भोजन ले साथ ही साथ जिस मन्त्र की साधना कर रहा है उसका मानसिक जप निरन्तर करने का प्रयास करे ये व्यक्ति के भटकाव को काफी हद तक कम करने में सहायक होगा ।
ये मेरे विचार और अनुभव है आपके विचार भिन्न हो सकते हैं ।