अंक ज्योतिष, ज्योतिष शास्त्र की तरह ही एक ऐसा विज्ञान है जिसमें अंकों की मदद से व्यक्ति के भविष्य के बारे में जानकारी दी जाती है. हिंदी में इसकी गूढ़ विद्या को अंक शास्त्र और अंग्रेजी में न्यूमेरोलॉजी कहते हैं.
अंक ज्योतिष में खासतौर से गणित के कुछ नियमों का प्रयोग कर व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं का आकलन कर उनके आने वाली जिंदगी के बारे में भविष्यवाणी की जाती है.
अंक ज्योतिष में जातक की जन्म तिथि के आधार पर मूलांक निकालकर उसके भविष्य फल की गणना की जाती है.
बहुत से लोग इस बात में विश्वास नही करते कि कुछ समय के बाद एक-सी घटना घटित होती है.
परन्तु बहुत बार ऐसा देखा गया है कि आज जो घटना घटित हुई ठीक वैसी ही कुछ वर्ष पूर्व हुई थी. बहुत से लोग यह तर्क करते है कि ऐसा केवल संयोगवश हो गया.
परन्तु बहुत बार जब उतने ही वर्ष के फासले पर बारंबार एक-सी घटना घटित हो तो उसे हम केवल ‘संयोगवश’ कह कर नही टाल सकते. अंक ज्योतिष को आप एक संयोग के तौर पर नहीं ले सकते है.
इतिहास में एक खास समय अंतराल पर ऐसी अनेको घटनाए हुई है जिन्होंने इसे मजबूती प्रदान की है. आइये इस पोस्ट में जानते है इसके बारे में डिटेल से.
क्या है अंक ज्योतिष ?
अंक ज्योतिष वास्तव में अंकों और ज्योतिषीय तथ्यों का मेल कहलाता है. अर्थात अंकों का ज्योतिषीय तथ्यों के साथ मेल करके व्यक्ति के भविष्य की जानकारी देना ही अंक ज्योतिष कहलाती है. जैसे कि आप सभी इस बात से भली भाँती अवगत होंगें कि अंक 1 से 9 होते हैं.
इसके साथ ही ज्योतिष शास्त्र मुख्य रूप से तीन मुख्य तत्वों पर आधारित होते हैं: ग्रह, राशि और नक्षत्र. लिहाजा अंक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का मिलान सभी नौ ग्रहों, बारह राशियां और 27 नक्षत्रों के आधार पर किया जाता है.
वैसे देखा जाए तो व्यक्ति के अमूमन सभी कार्य अंकों के आधार पर ही किये जाते हैं. अंक के द्वारा ही साल, महीना, दिन, घंटा, मिनट और सेकंड जैसी आवश्यक चीजों को व्यक्त किया जाता है.
अंक ज्योतिष का इतिहास
जहाँ तक अंक ज्योतिष के इतिहास की बात है तो आपको बता दें कि इसका प्रयोग मिस्र में आज से तक़रीबन 10,000 वर्ष पूर्व से किया जाता आ रहा है. मिस्र के मशहूर गणितज्ञ पाइथागोरस ने सबसे पहले अंको के महत्व के बारे में दुनिया को बताया था.
उन्होनें कहा था कि “अंक ही ब्रह्मांड पर राज करते हैं.” अर्थात अंकों का ही महत्व संसार में सबसे ज्यादा है.
प्राचीन काल में अंक शास्त्र की जानकारी खासतौर से भारतीय, ग्रीक, मिस्र, हिब्रु और चीनियों को थी. भारत में प्रचीन ग्रंथ “स्वरोदम शास्त्र” के ज़रिये अंक शास्त्र के विशेष उपयोग के बारे में बताया गया है.
प्राचीन क़ालीन साक्ष्यों और अंक शास्त्र के विद्वानों की माने तो, इस विशिष्ट शास्त्र का प्रारंभ हिब्रु मूलाक्षरों से हुआ था.
उस वक़्त अंक ज्योतिष विशेष रूप से हिब्रु भाषी लोगों का ही विषय हुआ करता था. साक्ष्यों की माने तो दुनियाभर में अंक शास्त्र को विकसित करने में मिस्र की जिप्सी जनजाति का सबसे अहम योगदान रहा है.
क्यों किया जाता है अंक ज्योतिष का प्रयोग ?
अंक ज्योतिष का प्रयोग विशेष रूप से अंकों के माध्यम से व्यक्ति के भविष्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाती है.
अंक ज्योतिष में की जाने वाली भविष्य की गणना विशेष रूप से ज्योतिषशास्त्र में अंकित नव ग्रहों (सूर्य, चंद्र, गुरु, राहु, केतु, बुध, शुक्र, शनि और मंगल) के साथ मिलाप करके की जाती है.
1 से 9 तक के प्रत्येक अंकों को 9 ग्रहों का प्रतिरूप माना जाता है, इसके आधार पर ही ये जानकारी प्राप्त की जाती है कि किस ग्रह पर किस अंक का असर है.
जातक के जन्म के बाद ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही उसके व्यक्तित्व की जानकारी प्राप्त की जाती है.
जन्म के दौरान ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही जातक का व्यक्तित्व निर्धारित होता है. प्रत्येक व्यक्ति के जन्म के समय एक प्राथमिक और एक द्वितीयक ग्रह उस पर शासन करता है.
इसलिए, जन्म के बाद जातक पर उस अंक का प्रभाव सबसे अधिक होता है, और यही अंक उसका स्वामी कहलाता है.
व्यक्ति के अंदर मौजूद सभी गुण जैसे की उसकी सोच, तर्क शक्ति, दर्शन, इच्छा, द्वेष, स्वास्थ्य और करियर आदि अंक शास्त्र के अंकों और उसके साथी ग्रह से प्रभावित होते हैं.
ऐसा माना जाता है कि यदि दो व्यक्तियों का मूलांक एक ही हो तो दोनों के बीच परस्पर तालमेल अच्छा होता है.
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अंक शास्त्र का महत्व
ज्योतिषशास्त्र की तरह ही अंक शास्त्र का भी महत्व ज्यादा होता है. इस विशेष विद्या के ज़रिये व्यक्ति के भविष्य से जुड़ी जानकारी को हासिल किया जा सकता है.
अंक ज्योतिष या अंक शास्त्र की मदद से किसी व्यक्ति में विधमान गुण, अवगुण, व्यवहार और विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
इसके माध्यम से शादी से पहले भावी पति पत्नी का मूलांक निकालकर उनके गुणों का मिलान भी किया जा सकता है.
आजकल देखा गया है कि अंकशास्त्र का प्रयोग वास्तुशास्त्र में भी करते हैं. नए घर का निर्माण करते वक़्त सभी अंकों का भी विशेष ध्यान रखा जाता है.
उदाहरण स्वरूप घर में कितनी सीढ़ियां होनी चाहिए, कितनी खिड़कियाँ और दरवाज़े होनी चाहिए इसका निर्धारण अंक शास्त्र के माध्यम से ही किया जाता है.
इसके साथ ही सफलता प्राप्ति के लिए भी लोग इस विद्या का प्रयोग कर अपने नाम की स्पेलिंग में भी परिवर्तन कर रहे हैं.
जैसे कि फिल्म जगत की बात करें तो मशहूर निर्माता निर्देशक करण जौहर से लेकर एकता कपूर तक सभी ने अंक शास्त्र की मदद से अपना भाग्योदय किया है.
मूलांक का अंक ज्योतिष में महत्व
मूलांक में मुख्य रूप से अंकों का प्रयोग तीन तरीके से किया जाता है :
मूलांक : किसी व्यक्ति की जन्म तिथि को एक-एक कर जोड़ने से जो अंक प्राप्त होता है वो उस व्यक्ति का मूलांक कहलाता है.
उदाहरण स्वरूप यदि किसी व्यक्ति कि जन्म तिथि 28 है तो 2+8 =10, 1 +0 =1, तो व्यक्ति का मूलांक 1 होगा.
भाग्यांक: किसी व्यक्ति की जन्म तिथि, माह और वर्ष को जोड़ने के बाद जो अंक प्राप्त होता है वो उस व्यक्ति का भाग्यांक कहलाता है.
जैसे यदि किसी व्यक्ति की जन्म तिथि 28-04-1992 है तो उस व्यक्ति का भाग्यांक 2+8+0+4+1+9+9+2 = 35, 3+5= 8, अर्थात इस जन्मतिथि वाले व्यक्ति का भाग्यांक 8 होगा.
नामांक: किसी व्यक्ति के नाम से जुड़े अक्षरों को जोड़ने के बाद जो अंक प्राप्त होता है, वो उस व्यक्ति का नामांक कहलाता है.
उदाहरण स्वरूप यदि किसी का नाम “RAM” है तो इन अक्षरों से जुड़े अंकों को जोड़ने के बाद ही उसका नामांक निकला जा सकता है. R (18, 1+8=9+A (1)+M(13, 1+3=4), 9+1+4 =14=1+4=5, लिहाजा इस नाम के व्यक्ति का नामांक 5 होगा.
इसके साथ ही आपको बता दें की अंक शास्त्र में किसी भी अंक को शुभ या अशुभ नहीं माना जाता है. जैसे की 7 को शुभ अंक माना जाता है लेकिन 13 को अशुभ, जबकि यदि 13 का मूलांक निकाला जाए तो भी 7 ही आएगा.
हर अक्षर से जुड़े अंक का विवरण निम्नलिखित है :
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 2 3 4 5 6 7 8 9
किसी भी व्यक्ति का मूलांक और भाग्यांक ये दोनों ही उसके जन्म तिथि के आधार पर निकाले जानते हैं, इसे किसी भी हाल में बदला नहीं जा सकता है.
अंक शास्त्र के अनुसार यदि किसी का नामांक, मूलांक और भाग्यांक से मेल खाता हो तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में अप्रत्याशित मान, सम्मान, खुशहाली और समृद्धि मिलती है.
बहरहाल आजकल लोग अपने नाम की स्पेलिंग बदलकर अपने नामांक को मूलांक या भाग्यांक से मिलाने का प्रयास करते हैं. इसमें उन्हें सफलता भी मिलती है और जीवन सुखमय भी बीतता है.
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अंक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र
अंक शास्त्र ज्योतिषशास्त्र की तरह ही एक प्राचीन विद्या है. ये दोनों ही एक दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं.
भविष्य से जुड़ी किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए अंक ज्योतिष विद्या का ही प्रयोग किया जाता है. हालाँकि इसके लिए ज्यादातर लोग ज्योतिषशास्त्र का ही प्रयोग करते हैं, अंक शास्त्र इस मामले में अभी भी पीछे हैं.
वैसे तो अंक शास्त्र ज्योतिषशास्त्र का ही एक भाग है लेकिन भविष्य की जानकारियाँ देने में दोनों में अलग-अलग तथ्यों का प्रयोग किया जाता है.
आजकल अंक शास्त्र की मदद से लोग विशेष रूप से कुछ कामों में अंकों की मदद लेते हैं. जैसे की लाटरी निकलने में या फिर मकान का अलॉटमेंट करने के लिए.
जैसे की हमने आपको पहले ही बताया कि प्रतीक अंक किसी ना किसी ग्रह से जुड़े हैं.
बहरहाल बात साफ़ है कि अंकशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. आजकल ना केवल आम व्यक्ति बल्कि बहुत सी जानी मानी हस्तियां भी अंक शास्त्र में विश्वास रखती हैं.
ज्योतिषशास्त्र में जिस प्रकार से जातक के बारे में उसकी राशि और कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार भविष्यफल बताया जाता है.
इसके विपरीत अंक शास्त्र में व्यक्ति की जन्म तिथि के अनुसार मूलांक, भाग्यांक और नाम के अनुसार नामांक निकालकर भविष्य फल की गणना की जाती है.
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हस्त रेखा और अंक ज्योतिष का सामञ्जस्य
अक-ज्योतिष के विषय में पिछले प्रकरणो में यह बताया जा चुका है कि जन्म की तारीख से यह कैसे पता लगाया जाय कि कौन-कौन से वर्ष महत्वपूर्ण होगे.
अब इस प्रकरण में यह बताया जाता है कि भविष्य के निर्णय मे हस्त रेखा विज्ञान तथा प्रक विद्या ज्योतिष एक दूसरे को कहाँ तक सहायता दे सकते हैं.
यदि कोई व्यक्ति हमको प्राकर अपना हाथ दिखावे और उसकी अगरेज़ी की जन्म तारीख भी हमे ज्ञात हो तो दोनो की सहायता से क्या हम से किसी विशेष नतीजे पर पहुँच सकते है.
अगरेजी हस्त रेखा विशारद ‘कीरो’ ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि हस्त रेखा के चिह्नो से— “किस वर्ष मे यह घटना “होगी”, यह निश्चय करने के लिये वह आयु को सात-सात वर्ष के भागो मे बाँटते थे.
प्रति सातवें वर्ष मे, जीवन मे कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है, ऐसा उनका विचार था. ‘कीरो’ लिखते है कि डॉक्टरी या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करने से भी ज्ञात होता है कि सात-सात वर्ष का समय विशेष परिवर्तन उत्पन्न करने वाला होता है.
बालक के उत्पन्न होने के पहिले भी गर्भ-पिण्ठ, एक के पश्चात् दूसरी, इस क्रम से सात अवस्थाओ मे परिवर्तित होता है.
मस्तिष्क के विकास मे भी सात स्थिति होती हैं. मनुष्य के शरीर मे प्रत्येक सात वर्ष के पश्चात् नयी त्वचा, पुरानी त्वचा का स्थान ले लेती है.
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अंक ज्योतिष में संख्या का महत्त्व अंतिम निष्कर्ष
कीरो के मता नुसार अनादिकाल से पृथ्वी के समस्त देशो मे सात की संख्या का बहुत महत्व रहा है. पृथ्वी मे सात नस्ल या जाति के लोग रहते हैं. सात ग्रह सप्ताह के सात वारो के अधिष्ठाता है. सात के महत्व के अन्य दृष्टान्त भी कीरो ने दिये हैं परन्तु स्थानाभाव के कारण उन्हें यहाँ स्थान नही दिया जा रहा है.
कीरो के मतानुसार एक सात वर्ष के जीवन के भाग के बाद, दूसरा सात वर्ष का भाग छोड़कर जो तीसरा, पाँचवा, सातव, नवां भाग आता है, उसमे समानता होती है.
इसी प्रकार जीवन का जो दूसरा, ७ वर्ष का भाग है, उसी के समान जीवन का चौथा, छठा, आठवाँ, दसवाँ व बारहवाँ भाग होगा. उदाहरण के लिये यदि कोई बालक अपने जीवन के सातवे वर्ष मे बीमार और कमजोर रहा है तो वह अपने जीवन के २१ वे वर्ष मे भी बीमार और कमज़ोर रहेगा.
इसके विपरीत यदि कोई बालक बचपन में कमजोर और बीमार था लेकिन सातवे वर्ष से उसका स्वास्थ्य अच्छा रहने लगा और यदि वह श्रापके पास बीस वर्ष की आयु में अपना हाथ दिखाता है कि स्वास्थ्य अच्छा नही है, कब से उसकी तन्दुरुस्ती अच्छी रहेगी तो आप उपर्युक्त सिद्धान्त के आधार पर कह सकते है कि २१ वें वर्ष से उसका स्वास्थ्य श्रच्छा रहेगा.
शरीर मे जो अन्दरूनी माँस-पेशियाँ, रुधिर या ग्रथियाँ हैं— जिनसे सदा रक्त स्राव रहता है – वे प्रत्येक चौदह वर्ष मे अपनी पूर्व स्थिति पर उसी प्रकार आ जाती हैं जैसे बारह घंटे बाद घड़ी की छोटी सूई अपने स्थान पर आ जाती है.
जहाँ तक शारीरिक स्वास्थ्य का सम्बन्ध है चौदह वर्ष की प्ररणाली का प्रयोग बहुत अधिक मिलता है एसा कीरो का मत है.