सप्त चक्र के बारे में हमने पिछली पोस्ट में जिक्र किया था आज की पोस्ट में हम बात करेंगे सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण की क्या आप जानते है हमारे शरीर में हर ऊर्जा चक्र अपनी अपनी ऊर्जा उत्पन करता है।
आपके भाव और व्यव्हार के साथ ही चक्रो के मध्य ऊर्जा का स्थानांतरण बढ़ता है और उनमे कोई एक चक्र मजबूत बनता है। आप गुस्से में होते है और अपने गुस्से को कुछ पल में नियंत्रित कर लेते है इसका मतलब अपने अपनी ऊर्जा को एक चक्र से दूसरे चक्र में स्थानांतरित कर दिया।
ऐसा संभव है जब आपका विवेक जाग्रत हो।
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण के बारे में डिटेल से दिया गया है की कैसे आप चक्रो के मध्य ऊर्जा उत्पन और उन्हें स्थान्तरित कर सकते है।
हालाँकि ये पोस्ट तंत्र मार्ग से सम्बन्ध रखती है पर फिर भी आपके काम आएगी ऐसा मेरा विश्वास है। भारतीय तंत्र विधा पश्चिमी विज्ञान से प्रभावित लोगो को अविश्वनीय लगती है।
इसका स्पस्ट कारण अज्ञानता है। क्यों की इंसान प्रारम्भ से धारणा बना लेता है की आधुनिक भौतिकवादी विज्ञान सब-कुछ जान गया है।
जो उनके नियम पर खरा नहीं उतरता है वह धोखा है, पाखण्ड है।
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण
आधुनिक विज्ञान का कोई भी वास्तविक अन्वेषक इस बात को स्वीकार नहीं करेगा की आज का विज्ञान सबकुछ जान गया है। ये लोग स्पस्ट कहते है की जो जाना है,वो मुट्ठी भर भी नहीं है। प्रकृति अपने अंदर विज्ञान का खजाना छिपाए बैठी है।
स्पस्ट है की जो जानने का दावा करते है, वो अधकचरे ज्ञान के गर्व में डूबे अहंकारी है।
जहां अहंकार है वहां ज्ञान कहां है ? लगता अत्यन्त विस्मयकारी है लेकिन सत्य है की आज से लगभग 50 हजार साल पूर्व ( लोकमान्य तिलक द्वारा उत्तर वैदिक काल निर्धारित ) इस धरती पर ऐसे विज्ञान का अस्तित्व था, जो प्रकृति के रहस्यों की अदभुत व्याख्या कर रहा था।
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण का यह विज्ञान अपने आप में सम्पूर्ण है और इसके प्रकाश में प्रकृति के हर रहस्य की व्याख्या हो जाती है। तंत्र इसी विज्ञान का प्रयोगिक स्वरूप है।
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण के लिए तंत्र का सही अर्थ आपको जान लेना चाहिए.
तंत्र का अर्थ एक system है और ठीक इसी meaning में इसे तंत्र विधा में भी लिया गया है। तंत्र का अर्थ यहाँ भी system ही है।
इसमें यह बताया जाता है की ब्रह्मांड में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा का circuit क्या है। इसकी nature क्या है। यह किस प्रकार कार्य करती है। किस प्रकार के गुणों को show करती है।
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सप्त चक्र के विवरण और उनके देवी देवता
इस circuit को मनुष्य के circuit के अनुसार समझना चाहिए। ( + ) pole ऊपर की ओर बंद रहता है। यह एक अर्ध-गोलाकार structure होती है। जिसको छोटे नवजात बच्चे के सर पर स्पस्ट देखा और महसूस किया जा सकता है।
1.) सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण-सहस्रार चक्र
पहला यही वह चन्द्रमा है,जिसे शिव के शीर्ष पर दिखाया जाता है। यहाँ ध्यान लगाने से चांदनी के रंग की ऊर्जा प्राप्त होती है, जिससे आयु, स्वास्थ्य, और कान्ति में वृद्धि होती है।
2.) ब्रह्मरन्ध्र भाग
दूसरा इसके निचे ब्रह्मचक्र होता है। जिसके मध्य में ब्रह्मा का शुन्य बिंदु होता है। इसके चारो ओर महामाया आघा गौरी का क्षेत्र है।
इस हिस्से से निकलने निकलने वाली तरंगे चांदी जैसी है। इस ऊर्जा का कार्य सूचनाओं का संग्रह करना और इसका विश्लेषण करके किसी समस्या पर अपना निर्णय देना होता है।
इसके निचे रूद्र की आँख यानि त्राटक का। ये रूद्र चक्र का ही अंग है। यहाँ से जो तरंगे निकलती है, वे अंतर्मन से सूचनाओं को प्राप्त करने वाली सहायक तरंगे है।
3.) रूद्र चक्र -त्राटक शक्ति का केंद्र
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण की खास श्रेणी में आज्ञा चक्र का मुख्य स्थान है। तीसरा चक्र रूद्र का चक्र है। इसके बिच महामाया का बिंदु होता है और इसके चारो ओर वलय में ऊर्जा निकलती रहती है। इन तरंगो का रंग राख जैसा होता है।
ये ज्ञान की तरंगे है। समस्त सूचनाओं एवं भाव का संकलन ये ही करती है।
इसी कारन आँख, नाक, मुंह, जीभ, आदि इससे जुड़े रहते है।
रूद्र चक्र के वलय से निकलने वाली तरंगे गणेश जी की सूंड की तरह है। ये अत्यन्त चंचल होती है। ये मानसिक तरंगे है और इतनी शक्तिशाली होती है की समस्त क्रिया विधि का संचालन ये ही करती है। इसलिए इन्हे रूद्र या विश्वदेवा कहा जाता है।
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4.) गंधर्व चक्र
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण में चौथा इसके निचे गन्धर्व चक्र है। यहां बिच में रूद्र का बिंदु है और के वलय सरस्वती की तरंगे है. ये अभिव्यक्ति की की तरंगे है। इनके द्वारा हमारे शरीर के अंग अपनी अनुभूति को व्यक्त करते है।
5.) विष्णु चक्र
पांचवा उसके केंद्र में विष्णु का चक्र है। इसके मध्य गन्धर्व बिंदु है। इसके चारो ओर विष्णु की तरंगे का वलय है। यही इकाई सूर्य है। यही जीवात्मा है। सारा power circuit इसी के केंद्रीभूत है।
6.) लक्ष्मी चक्र
छटा इसके निचे लक्ष्मी का चक्र है। इसके मध्य में विष्णु का बिंदु है. चारो ओर के वलय में लक्ष्मी की तरंगे है। इनका गुण information collection है।
7.) दुर्गा चक्र
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण और सातवां इसके निचे दुर्गा का चक्र है। इसके मध्य में लक्ष्मी का बिंदु है। चारो और के वलय में दुर्गा नामक तरंगे निकलती रहती है। ये कर्म, क्रिया को control करती है।
8.) माँ काली चक्र
आठवा सबसे निचे काली का चक्र है। इसके मध्य दुर्गा का बिंदु है। चारो और से काली की तरंगे है। ये anger, हिंसा, sex, क्रूरता,निर्ममता आदि पाशविक रखती है।
काली के चक्र के मध्य से जुडी एक दण्डाकर ऊर्जा सरंचना, जिसमे ऊर्जा वलयलिप्ते होते है। आगे बढ़कर लिंग का निर्माण करती है। उसमे एक अर्द्धचन्द्राकार छिद्र होता है। यहाँ से ( – ) ऊर्जा का विसर्जन होता है।
चक्र में तरंगो के गुण, रंग और इनकी सूक्ष्मता
- ब्रहा-चक्र ( सहस्रार-चक्र ) : श्वेत चांदी सी चमकीली तरंगे। सूचनाओं को ग्रहण करके संग्रहीत करना एवं प्राप्त सूचनाओं आधार पर तत्कालीन सुचना का विश्लेषण करना।
- त्राटक बिंदु : श्वेत दूध जैसी. अंतर्मन से सुचना प्राप्त करती है। सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण में ये चक्र महत्वपूर्ण है.
- रूद्र – चक्र ( आज्ञा चक्र ) : श्वेत राख जैसी तरंगे। ये human system में monitor का कार्य करती है। इनके बिना कही कोई क्रिया नहीं होती है। सारा system इनके control में होता है।
- गन्धर्व चक्र ( विशुद्ध चक्र ) : आसमानी रंग की. कोमल भाव, कलात्मक अनुभूति, उदात्त प्रेम, भाव की विह्वलता आदि गुण इनकी विशेषता है।
- विष्णु चक्र ( अनाहत चक्र ) : यह जीवात्मा है। इस चक्र की ऊर्जा पर ही समस्त circuit काम करता है। इसे ईंधन ( वायु-तंत्र ) भी आज्ञा चक्र से हासिल होता है। अनुभूति, भोग, क्रिया और जन्म इसी के द्वारा होता है। ये सुनहले रंग की होती है।
- लक्ष्मी चक्र ( मणिपुर चक्र ) : नारंगी color की और इसका गुण collection करना होता है।
- दुर्गा चक्र ( स्वाधिष्ठान-चक्र ) : ये किरणे सिंदूरी रंग की होती है। इसमें कर्म और क्रिया की शक्ति है। वैदिक ऋषि इसे विश्वकर्मा कहते थे.
- काली चक्र ( मूलाधार चक्र ) : ये रक्तिम color की किरणे है, इनमे Anger, Violence, कठोरता, sex और वीभत्सता आदि का भाव है।
इनमे पहला चक्र सबसे सूक्ष्म और तीव्र होता है जबकि आठवा चक्र सबसे स्थूल और भौतिक रूप से शक्तिशाली होता है।
तंत्र के अनुष्ठान में मंत्र, हवं सामग्री, आसन, काल का चुनाव इन तरंगो के गुण, भाव, और इसके शक्ति बिंदु के स्थान के आधार पर किया जाए तो तंत्र में सफलता मिलने के chance बढ़ जाते है।
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वशीकरण और काली चक्र
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण और वशीकरण विधा को सिखने के लिए सबसे पहले काली चक्र को साधना पड़ता है। प्रत्येक तंत्र की सिद्धि में यह आवश्यक है। काली की तरंगे कम हो तो शरीर सुस्त और सत्वहीन होता है। इसलिए इनका होना भी आवश्यक है।
पर जब इनकी मात्रा शरीर में अधिक होने लगती है तो इंसान क्रोधी, हिंसक, काम, परपीड़क, और ईर्ष्यालु बन जाता है। काली की तरंगे आसानी से उत्पन होने वाली और आसानी से काम करने लगती है। जब ये उत्पन होती है तो हर तरंग निष्क्रिय हो जाती है। यहाँ तक की रूद्र की तरंगे भी इनके सामने बेकार हो जाती है।
इंसान की विचारने की क्षमता भी ख़त्म हो जाती है।
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Energy transfer from chakra to chakra -सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण
सप्त चक्र के मध्य ऊर्जा स्थानांतरण को समझ कर हम आसानी से अपने अंदर एक चक्र के मध्य बहने वाली ऊर्जा को आसानी से दूसरे चक्र में प्रवाहित कर सकते है।
मान लीजिए आपके अंदर काम भाव या गुस्सा आने लगता है.
ठीक उसी वक़्त किसी और भाव का ध्यान करे जैसे की आज्ञा चक्र पर या फिर और किसी भाव का चिंतन करे. ये अभ्यास आप सुबह उठ कर भी कर सकते है। जिसमे आप आसानी से मूलाधार चक्र को activate कर काली भाव को जाग्रत कर सकते है।
जिस चक्र पर ऊर्जा को Transfer करते है वो उतना ही मजबूत बनता है।
मान लीजिए की आपके अंदर काली भाव उठने लगे है और आप अपना ध्यान मूलाधार चक्र से हटाकर किसी और चक्र पर कर दे. चक्र और उनसे जुड़े भाव ऊपर आप पढ़ चुके है।
इनसे जुड़े देवता की पूजा करने पर भी आप उस चक्र को ज्यादा Activate रख सकते है। अगर आपको आज्ञा चक्र को मजबूत बनाना है तो आप गणेश जी की आराधना करे।
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